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नव इंद्रिय

सुमित्रानंदन पंत - नव इंद्रिय

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


नव जीवन की इंद्रिय दो हे, मानव को,

नव जीवन की नव इंद्रिय,

नव मानवता का अनुबव कर सके मनुज

नव चेतनता से सक्रिय !

स्वर्ग खंड इस पुण्य भूमि पर

प्रेत युगों के करते तांडव,

भव मानव का मिलन तीर्थ

बन रहा रक्त चंडी का रौरव !

अनिर्वाप्य साम्राज्य लालसा

अगणित नर आहुति देती नव,

जाति वर्ग औ देश राष्ट्र मे

आजि छिड़ा प्रलयंकर विप्लव !

नव युग की नव आत्मा दो पशु मानव को,

नव जीवन की नव इंद्रिय,

भव मानवता का साम्राज्य बने भू पर

दश दिशि के जनगण को प्रिय ।

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References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

सितंबर' ३९

Last Updated : October 11, 2012

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