जाती ग्राम वधू पति के घर !
मा से मिल, गोदी पर सिर धर,
गा गा बिटिया रोती जी भर,
जन जन का मन करुणा कातर,
जाती ग्राम वधू पति के घर !
भीड़ लग गई लो, स्टेशन पर,
सुन यात्री ऊँचा रोदन स्वर
झाँक रहे खिड़की से बाहर,
जाती ग्राम वधू पति के घर !
चिन्तातुर सब, कौन गया अम्र,
पहियों सेदब, कट पटरी पर,
पुलिस कर रही कहीं पकड़-धर?
जाती ग्राम वधु पति के घर ?
मिलती ताई से गा रोकर,
मौसी से वह आपा खोकर,
बारी-बारी रो, चुप होकर,
जाती ग्राम वधू पति के घर !
बिदा फुफा से ले हाहाकर,
सखियों से रो धो बतिया कर,
पड़ोसिनों पर टूट, रँभा कर,
जाती ग्राम वधू पति के घर !
मा कहती,- रखना सँभाल घर,
मौसी, - धनि, लाना गोदी भर,
सखियाँ, - जाना हमें मत विसर,
जाती ग्राम वधू पति के घर !
नहीं आँसुओं से आँचल तर,
जन बिछोह से ह्रदय न कातर,
रोती वह, रोने का अवसर,
जाती ग्राम वधू पति के घर !
लो, अब गाड़ी चल दी भर भर,
बतलाती धनि पति से हँस कर,
सुस्थिर डिब्बे के नारी नर,
जाती ग्राम वधू पति के घर !
रोना गाना यहां चलन भर !
आता उसमें उभर न अंतर,
रूढ़ि यंत्र जन जीवन परिकर,
जाती ग्राम वधू पति के घर !