हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|गीत और कविता|सुमित्रानंदन पंत|ग्राम्या|
ग्राम वधू

सुमित्रानंदन पंत - ग्राम वधू

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


जाती ग्राम वधू पति के घर !

मा से मिल, गोदी पर सिर धर,

गा गा बिटिया रोती जी भर,

जन जन का मन करुणा कातर,

जाती ग्राम वधू पति के घर !

भीड़ लग गई लो, स्टेशन पर,

सुन यात्री ऊँचा रोदन स्वर

झाँक रहे खिड़की से बाहर,

जाती ग्राम वधू पति के घर !

चिन्तातुर सब, कौन गया अम्र,

पहियों सेदब, कट पटरी पर,

पुलिस कर रही कहीं पकड़-धर?

जाती ग्राम वधु पति के घर ?

मिलती ताई से गा रोकर,

मौसी से वह आपा खोकर,

बारी-बारी रो, चुप होकर,

जाती ग्राम वधू पति के घर !

बिदा फुफा से ले हाहाकर,

सखियों से रो धो बतिया कर,

पड़ोसिनों पर टूट, रँभा कर,

जाती ग्राम वधू पति के घर !

मा कहती,- रखना सँभाल घर,

मौसी, - धनि, लाना गोदी भर,

सखियाँ, - जाना हमें मत विसर,

जाती ग्राम वधू पति के घर !

नहीं आँसुओं से आँचल तर,

जन बिछोह से ह्रदय न कातर,

रोती वह, रोने का अवसर,

जाती ग्राम वधू पति के घर !

लो, अब गाड़ी चल दी भर भर,

बतलाती धनि पति से हँस कर,

सुस्थिर डिब्बे के नारी नर,

जाती ग्राम वधू पति के घर !

रोना गाना यहां चलन भर !

आता उसमें उभर न अंतर,

रूढ़ि यंत्र जन जीवन परिकर,

जाती ग्राम वधू पति के घर !

N/A

References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

जनवरी' ४०

Last Updated : October 11, 2012

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP