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अध्यायः ९८

विष्णुस्मृतिः - अध्यायः ९८

स्मृतिग्रंथ म्हणजे धर्मशास्त्रावरील एक आवश्यक वचनांचा भाग.


इत्येवं उक्ता वसुमती जानुभ्यां शिरसा च नमस्कारं कृत्वोवाच ॥९८.१॥

भगवन्, त्वत्समीपे सततं एवं चत्वारि भूतानि कृतालयानि आकाशः शङ्खरूपी, वायुश्चक्ररूपी, तेजश्च गदारूपि, अम्भोऽम्भोरुहरूपि । अहं अप्यनेनैव रूपेण भगवत्पादमध्ये परिवर्तिनी भवितुं इच्छामि ॥९८.२॥

इत्येवं उक्तो भगवांस्तथेत्युवाच ॥९८.३॥

वसुधापि लब्धकामा तथा चक्रे ॥९८.४॥

देवदेवं च तुष्टाव ॥९८.५॥

ओं नमस्ते ॥९८.६॥

देवदेव ॥९८.७॥

वासुदेव ॥९८.८॥

आदिदेव ॥९८.९॥

कामदेव ॥९८.१०॥

कामपाल ॥९८.११॥

महीपाल ॥९८.१२॥

अनादिमध्यनिधन ॥९८.१३॥

प्रजापते ॥९८.१४॥

सुप्रजापते ॥९८.१५॥

महाप्रजापते ॥९८.१६॥

ऊर्जस्पते ॥९८.१७॥

वाचस्पते ॥९८.१८॥

जगत्पते ॥९८.१९॥

दिवस्पते ॥९८.२०॥

वनस्पते ॥९८.२१॥

पयस्पते ॥९८.२२॥

पृथिवीपते ॥९८.२३॥

सलिलपते ॥९८.२४॥

दिक्पते ॥९८.२५॥

महत्पते ॥९८.२६॥

मरुत्पते ॥९८.२७॥

लक्ष्मीपते ॥९८.२८॥

ब्रह्मरूप ॥९८.२९॥

ब्राह्मणप्रिय ॥९८.३०॥

सर्वग ॥९८.३१॥

अचिन्त्य ॥९८.३२॥

ज्ञानगम्य ॥९८.३३॥

पुरुहूत ॥९८.३४॥

पुरुष्टुत ॥९८.३५॥

ब्रह्मण्य ॥९८.३६॥

ब्रह्मप्रिय ॥९८.३७॥

ब्रह्मकायिक ॥९८.३८॥

महाकायिक ॥९८.३९॥

महाराजिक ॥९८.४०॥

चतुर्महाराजिक ॥९८.४१॥

भास्वर ॥९८.४२॥

महाभास्वर ॥९८.४३॥

सप्त ॥९८.४४॥

महाभाग ॥९८.४५॥

स्वर ॥९८.४६॥

तुषित ॥९८.४७॥

महातुषित ॥९८.४८॥

प्रतर्दन ॥९८.४९॥

परिनिर्मित ॥९८.५०॥

अपरिनिर्मित ॥९८.५१॥

वशवर्तिन् ॥९८.५२॥

यज्ञ ॥९८.५३॥

महायज्ञ ॥९८.५४॥

यज्ञयोग ॥९८.५५॥

यज्ञगम्य ॥९८.५६॥

यज्ञनिधन ॥९८.५७॥

अजित ॥९८.५८॥

वैकुण्ठ ॥९८.५९॥

अपार ॥९८.६०॥

पर ॥९८.६१॥

पुराण ॥९८.६२॥

लेख्य ॥९८.६३॥

प्रजाधर ॥९८.६४॥

चित्रशिखण्डधर ॥९८.६५॥

यज्ञभागहर ॥९८.६६॥

पुरोडाशहर ॥९८.६७॥

विश्वेश्वर ॥९८.६८॥

विश्वधर ॥९८.६९॥

शुचिश्रवः ॥९८.७०॥

अच्युतार्चन ॥९८.७१॥

घृतार्चिः ॥९८.७२॥

खण्डपरशो ॥९८.७३॥

पद्मनाभ ॥९८.७४॥

पद्मधर ॥९८.७५॥

पद्मधाराधर ॥९८.७६॥

हृषीकेश ॥९८.७७॥

एकशृङ्ग ॥९८.७८॥

महावराह ॥९८.७९॥

द्रुहिण ॥९८.८०॥

अच्युत ॥९८.८१॥

अनन्त ॥९८.८२॥

पुरुष ॥९८.८३॥

महापुरुष ॥९८.८४॥

कपिल ॥९८.८५॥

सांख्याचार्य ॥९८.८६॥

विष्वक्सेन ॥९८.८७॥

धर्म ॥९८.८८॥

धर्मद ॥९८.८९॥

धर्माङ्ग ॥९८.९०॥

धर्मवसुप्रद ॥९८.९१॥

वरप्रद ॥९८.९२॥
विष्णो ॥९८.९३॥

जिष्णो ॥९८.९४॥

सहिष्णो ॥९८.९५॥

कृष्ण ॥९८.९६॥

पुण्डरीकाक्ष ॥९८.९७॥

नारायण ॥९८.९८॥

परायण ॥९८.९९॥

जगत्परायन ॥९८.१००॥

नमोनम इति ॥९८.१०१॥

स्तुत्वा त्वेवं प्रसन्नेन मनसा पृथिवी तदा ।
उवाच संमुखं देवीं लब्धकामा वसुंधरा ॥९८.१०२॥

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Last Updated : November 11, 2016

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