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Bhagvad Gita
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter One
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Two
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Bhagvad Gita - Chapter Three
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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Bhagvad Gita - Chapter Nine
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Bhagvad Gita - Chapter Ten
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Bhagvad Gita - Chapter Eleven
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Bhagvad Gita - Chapter Twelve
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Bhagvad Gita - Chapter Thirteen
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Bhagvad Gita - Chapter Fourteen
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Bhagvad Gita - Chapter Fifteen
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Bhagvad Gita - Chapter Sixteen
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Bhagvad Gita - Chapter Seventeen
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Bhagvad Gita - Chapter Eighteen
The Bhagvad Gita is a conversation between Lord Krishna and the Pandava prince Arjuna taking place on the battlefield before the start of the Kurukshetra War
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श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय २
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ३
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ४
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ५
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ६
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ७
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ८
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ९
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १०
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ११
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १२
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १३
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १४
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १५
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १६
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १७
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १८
श्रीमद्भगवद्गीताका मनन-विचार धर्मकी दृष्टीसे, सृष्टी रचनाकी दृष्टीसे, साहित्यकी दृष्टीसे, या भाव भक्तिसे किया जाय तो जीवन सफल ही सफल है।
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श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय २
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ३
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ४
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ५
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ६
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ७
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ८
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ९
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १०
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय ११
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १२
श्रीमद्भगवद्गीतेत सांगितलेली भक्ति म्हणजे धार्मिक समाधान देणारे विचारयुक्त साधन आहे शिवाय श्रद्धा व भक्तियुक्त अंतःकरणाने एकाग्र होऊन विचार केल्यास एक वेगळाच शब्दातीत अनुभव येतो.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १३
'कथा कल्पतरू' या ग्रंथात चार वेद, सहा शास्त्रे, अठरा पुराणे, तसेच रामायण, महाभारत व श्रीमद्भागवत हे हिंदू धर्मिय वाङमय ओवीरूपाने वर्णिलेले आहे.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १४
'कथा कल्पतरू' या ग्रंथात चार वेद, सहा शास्त्रे, अठरा पुराणे, तसेच रामायण, महाभारत व श्रीमद्भागवत हे हिंदू धर्मिय वाङमय ओवीरूपाने वर्णिलेले आहे.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १५
'कथा कल्पतरू' या ग्रंथात चार वेद, सहा शास्त्रे, अठरा पुराणे, तसेच रामायण, महाभारत व श्रीमद्भागवत हे हिंदू धर्मिय वाङमय ओवीरूपाने वर्णिलेले आहे.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १६
'कथा कल्पतरू' या ग्रंथात चार वेद, सहा शास्त्रे, अठरा पुराणे, तसेच रामायण, महाभारत व श्रीमद्भागवत हे हिंदू धर्मिय वाङमय ओवीरूपाने वर्णिलेले आहे.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १७
'कथा कल्पतरू' या ग्रंथात चार वेद, सहा शास्त्रे, अठरा पुराणे, तसेच रामायण, महाभारत व श्रीमद्भागवत हे हिंदू धर्मिय वाङमय ओवीरूपाने वर्णिलेले आहे.
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श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १८
'कथा कल्पतरू' या ग्रंथात चार वेद, सहा शास्त्रे, अठरा पुराणे, तसेच रामायण, महाभारत व श्रीमद्भागवत हे हिंदू धर्मिय वाङमय ओवीरूपाने वर्णिलेले आहे.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - मंगलाचरण
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - वर्णव्यवस्था
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - अथ ब्राम्हणलक्षण
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - क्षत्रिय लक्षण
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - वैश्यलक्षण
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - शूद्रलक्षण
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - क्षत्रियधर्म
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - वैश्यकर्मधर्म
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - शूद्रकर्मधर्म
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - आश्रमव्यवस्थावर्णन
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - आश्रमलक्षणवर्णन
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - गृहस्थाश्रम
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - बानप्रस्थाश्रम
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - संन्यासाश्रम
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - मठविभाग
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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राजधर्म विचार- राजधर्म वर्णन
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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राजधर्म विचार- राजाचे गुण
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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राजधर्म विचार- राजाचा आवश्यक व्यवहार
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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राजधर्म विचार- राजनीतीचे वर्णन
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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राजधर्म विचार- व्यवहार नीति
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - प्रजापालन
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - प्रजा कर्तव्य
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - राजा व राजसभा
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा हा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग २
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग ३
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग ४
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग ५
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग ६
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग ७
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग ८
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग ९
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १०
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही, म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह. व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते.
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग ११
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १२
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १३
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १४
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १५
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १६
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १७
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १८
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग १९
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग २०
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग २१
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग २२
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग २३
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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