Dictionaries | References

चंन्द्रहास

   
Script: Devanagari

चंन्द्रहास

चंन्द्रहास n.  केरलाधिपति सुधार्मिक राजा का पुत्र । इसका जन्म मूल नक्षत्र पर हुआ था । इसके अतिरिक्त, दारिद्य्रदर्शक छठवीं अंगुलि इसके बायें पैर को थी । इस अशुभ चिन्ह के कारण, इसका जन्म होते ही, शत्रुओं ने इसके पिता का वध किया । इसकी माता ने सहगमन किया । इस प्रकार यह अनाथ हो गयाएक दाई ने इसको सम्हाला । वह इसे कौंतलकापुरी ले गई । वहॉं तीन वर्षो तक मजदूरी कर के उसने इसका भरण पोषण किया । कुछ दिनों के बाद वह मृत हुई । भिक्षान्न सेवन कर के इसने दिन बताये । बाद में कुछ स्त्रियों ने इसका पालन किया । यह पॉंच साल का हुआ, तब अन्य लडकों में खेलने लगाइसे बहुत स्त्रियों ने नहला धुला कर खाना खिलाया । एक दिन सहजवश यह धृष्टबुद्धि प्रधान के घर गया । वहॉं ब्राह्मणभोजन चालू था । वहॉं निमंत्रित योगीश्वर तथा मुनियों को चन्द्रहास को देख कर, अत्यंत विस्मय हुआ । उन्होने इसे आशीर्वाद दिया कि, यह राजा बनेगा । उसी प्रकार उन्होने धृष्टबुद्धि से कहा, ‘तुम्हारी संपत्ति की रक्षा भी यही करेगा । ’ इससे क्रुद्ध हो कर तथा मन में शंकाकर, उसने इस बालक को जल्लादों के हाथों में सौंप दियाफिर भी यह पूरे समय हास्यवदन ही थामार्ग में मिला हुआ शालिग्राम, इसने बडी भक्ति से अपने मुख में रखा था । जल्लादों ने तीक्ष्ण शस्त्र उठाये । इसने उनकी स्तुति की । इससे जल्लादों के मन में इसके प्रति पूज्य बुद्धि उत्पन्न हुई । उन्होंने इसका वधकर के, केवल छठंवी अंगुलि काट लीवही अंगुलि धृष्टबुद्धि प्रधान को दे कर इनाम प्राप्त किया । जल्लादों द्वारा वन में छोडे जाने के बाद, यह अरण्य में इधर घूमने लगाइस समय कुलिंद देश का राजा, मृगया के हेतु से इसी अरण्य में आया थाइस बालक को देख कर, राजा का मन द्रवित हुआ । उसने इसकी पूछताछ कीपश्चात् चंदनावती नगरी में इसे अपने साथ ले जार कर, उसे रानी मेधावती को सौंप दियाराजा ने इसका नाम चन्द्रहास रखासब विद्याएँ भी इसे सिखायी । चन्द्रहास के कारण कुलिंद में सर्वत्र आनंद फल गया । शिक्षाप्राति के समय, चन्द्रहास केवलहरिशब्द का ही उच्चारण करता था । इससे कुपित हो कर गुरु ने इसकी शिकायत राजा, के पास कीपरंतु, राजा ने कहा, ‘इसकी इच्छा के अनुसर इसे व्यवहार करने दो ।’ आठ वर्ष की आयु में इसका वतबंध हुआ । तदनंतर इसने वेदाध्ययन किया । बाद में यह धनुर्विद्या में भी प्रवीण हो गयापंद्रह वर्ष की आयु होते ही इसने दिग्विजय करने की इच्छा दर्शाई । परंतु कुलिंद ने कहा, ‘अपनेसे बलवान राजाओं को भला तुम किस प्रकार जीत सकोगे? जान की इच्छा हो, तो जाओ । कौंतल राजा के दुश्मन मुझे हमेशा त्रस्त करते है । क्योकि मैं उसका अंकित हूँ’। यह सुन कर चन्द्रहास दिग्विजय करने गया । इसने सब राजाओं को जीत लिया । इस प्रकार विजयी हो कर तथा अपरंपार संपत्ति ले कर यह चंदनावती लौटा । यह सुन कर कुलिंद इसका स्वागत करने आयाबाद में कुलिंद के कथनानुसार, चन्द्रहास ने अपने सेवकों द्वारा कौंतल राजा को करभार भेजा । सेवकों ने उसे बताया, ‘कुलिंद राजा सुखी है । उसके पुत्र चन्द्रहास ने दिग्विजय कर के यह संपत्ति भेजी है’। इससे विस्मयाभिभूत हो कर कौंतल चन्द्रहास को देखने चंदनावती आया । कुलिंद से मिल कर उसने कहा, ‘पुत्रजन्म का वृत्त तुमने हमें क्यों नहीं सूचित किया’। चंद्रहास का सारा जन्मवृत्तांत कुलिंद ने उसे बताया । इससे कौंतल ने चन्द्रहास को पहचान लिया, तथा मन ही मन कुछ शंकित हुआ । पुनः चन्द्रहास का वध करने के विचार उसके मन में आयेइस संबंध में एक पत्र अपने पुत्र मदन को लिख कर, वह ले जाने के लिये चन्द्रहास से कहाचन्द्रहास कुंतल नगरी के लिये रवाना हुआ । राह में एक रम्य स्थान पर यह सोया थाउस स्थान पर राजकन्या चंपकमालिनी अपनी सखियों के साथ आई । उसके साथ धृष्टबुद्धि प्रधान की कन्या विषया भी थी । उसने चन्द्रहास को सरोवर के किनारे निद्रामग्न अवस्था में देखा । अपने पैरों से नूपुर निकाल कर धीरे-धीरे वह उसके पास गई । वहॉं उसने एक पत्र देखा । उसने वह पत्र पढा । उस पत्र में चन्द्रहास के लिये विषप्रयोग की सूचना थी । इससे उसका प्रेमी हृदय भग्न हो गयाउसने पत्र के ‘विषमस्मै’ शब्द के बदले आम के गोंद से ‘विषयास्मै’ लिखापश्चात् पत्र बंद कर वहीं रख दियाइस प्रकर धृष्टबुद्धि से इसकी रक्षा हुई । बाद में यह पत्र ले कर चन्द्रहास, मदन के पास गया । यह पत्र पढ कर मदन को अत्यंत आनंद हुआ । इधर विषया ने भी देवी की, ‘यही पति मुझे प्राप्त होइस इच्छा से उत्कट आराधना कीतदनंतर योग्य मुहूर्त पर मदन से चन्दहास तथा विषया को विवाहबद्ध कर दिया । इसी समय, धृष्टबुद्धि ने चंदनावती में कुलिंद को बद्ध कर के, प्रजा पर अनन्वित अत्याचार किये । इस प्रकार अत्याचार से प्राप्त धन ले कर वह कुंतलपुर आया । वहॉं वाद्यों का वादन हो रहा थामदन ने चन्दहास को विषया दी, यह उसे मालूम हुआ । वह अत्यंत संतप्त हुआ तथा मदन क्रोधित हुआ । परंतु बाद में मदन ने उसे समझाया । फिर भी चन्द्रहासवध की कल्पना उसके मन से नहीं हटीदेवी के दर्शन के लिये जाने की आज्ञा, धृष्टबुद्धि ने चन्द्रहास को दी । वहॉं उसने इसके वध के लिये दो अंत्यज रखे । परंतु इस समय भी धृष्टबुद्धि के दुर्दैव से चन्द्रहास के बदले मदन का वध हुआ । इसके पूर्व ही कौंतल ने अपनी कन्या चंपकमालिनी तथा सब राज्य चन्द्रहास को दियापश्चात् वह स्वयं अरण्य में चला गयाचन्द्रहास राजा बन गया, ऐसा सुन कर धृष्टबुद्धि क्रोध से पागल सा हो गया । चंडिकादर्शन के लिये न जा कर, चन्द्रहास ने कुलप्रथा तोड दी, यह सुन कर भी इसे अत्यंत क्रोध आयावह तुरंत चंडिकामंदिर में गया । वहॉं मदन मृत पडा हुआ थाइस समय कृतवर्म का उसे अत्यंत पश्चात्ताप हुआ । उसका अमन कहने लगा, ‘विष्णवों से द्रोह करने का यह दुष्परिणाम है’। अंत में पुत्रशोक अनावर हो कर स्तंभ पर सिर पटक कर उसने प्राण दिये । यह वृत्त सुन कर चन्द्रहास को अत्यंत दुःख हुआ । अपने मांस का होम कर के इसने देवी को प्रसन्न किया । देवी ने इसे दो वरदान दिये । इन वरों से मदन तथा धृष्टबुद्धि जीवित हो गये । कुलिंद राजा कौंतल के अत्याचारों से त्रस्त हो कर पत्नी समेत अग्निप्रवेश कर रहा था । इतने में धृष्टबुद्धि ने चन्द्रहास का वृत्त उसे कथन किया । बाद में चन्दहास अपने पिता के आज्ञानुसार राज्य करने लगायुधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ मे समय, इसने उसकी अश्वमेधीय अश्व पकड लिया थापरंतु श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार अर्जुन ने इसके साथ संधि कर लीइस कारण, चन्द्रहास ने अश्वमेध में काफी सहायता कीचन्द्रहास को विषया मकराक्ष तथा चंपकमालिनी से पद्माक्षनामक दो पुत्र हुए [जै.अ.५०-५९]चन्द्रहास की राजधानी चंदनावती कौंतलापुर से छः योजन दूर थी [जै.अ.५२] । चंदनावती बडोदा का प्राचीन नाम है । परंतु कुंतलपूर वर्तमान खेडा जिला का सरनाल ग्राम हैं । इसलिये बडोदा को चंदनावती नहीं कह सकते । कनिंगहँम ने लिखा है कि, कुंतलपुर ग्वालियर प्रांत में है ।

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP