समन्त्रकं गणपतिस्तोत्रम् - नमो ॥ ग णपते तुभ्यं ज्येष...
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते.
Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
नमो ॥ ग णपते तुभ्यं ज्येष्ठ ॥ ज्ये ष्ठाय ते नम: ।
स्मर ॥ णा द्यस्य ते विघ्ना न ति ॥ ष्ठ न्ति कदा चन ॥१॥
देवा ॥ नां चापि देवस्त्वं ज्येष्ठ ॥ रा ज इति श्रुत: ।
त्यक्त्वा ॥ त्वा मिह क: कार्यसिर्द्धि ॥ जं तुर्गमिषति ॥२॥
स त्वं ॥ ग णपति: प्रीतो भव ॥ व्र ह्यादिपूजित ।
चर ॥ ण स्मरणात्तेपि स्युर्ब्र ॥ ह्या द्या यशस्विन: ॥३॥
पर ॥ प रब्रह्मदाता सुरा ॥ णां त्वं सुरो यत: ॥
सन्म ॥ तिं देहि मे ब्रह्मपते ॥ ब्र ह्मसभीडित्त ॥४॥
उक्तं ॥ ह स्तिमुखश्रुत्या त्वं ब्र ॥ ह्य परमित्यपि ॥
कृक्तं ॥ वा हनमाखुस्ते कार ॥ ण न्त्वत्र वेद नो ॥५॥
इयं ॥ म हेश ते लीला न प ॥ स्प र्श यतो मति: ।
त्वां न ॥ हे रम्ब कुत्रापि पर ॥ त न्त्रत्वमीश ते ॥६॥
स त्वं ॥ क वीना च कविर्देव ॥ आ द्यो गणेश्वर: ।
अर ॥ विं दाक्ष विद्येश प्रसं ॥ न: प्रार्थनां श्रुणु ॥७॥
त्वमे ॥ क दन्त विघ्नेश देव ॥ श्रृ ण्वर्मकोक्तिवत् ॥
सक्त ॥ वी नां मध्य एव नैका ॥ ण्वं श कविं कुरु ॥८॥
श्रीवि ॥ ना यक ते दृष्टया कोऽपि ॥ नू नं भवेत्कवि: ॥
तं त्वा ॥ मु मासुतं नौमि सन्म ॥ ति प्रद कामद ॥९॥
ममा ॥ प राध: क्षन्तव्यो नति ॥ भि: संप्रसीद मे ॥
न न ॥ म स्याविधिं जाने त्वं प्र ॥ सी दाद्य केवलं ॥१०॥
न मे ॥ श्र द्धा न मे भक्तिर्न त्व ॥ द र्चनपद्धति: ॥
ज्ञाता ॥ व दान्य ते स्मीति ब्रुवे ॥ सा धनवर्जित: ॥११॥
कर्तुं ॥ स्त वं च तेनीश: प्रसी ॥ द कृपयोद्धर ॥
प्रणा ॥ मं कुर्वेऽतोऽनेन सदा ॥ नं द प्रसीद मे ॥१२॥
इति श्रीवासुदेनान्दसरस्वतीविरचितं गणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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Last Updated : July 12, 2016
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