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Bhartṛihari's three Satakas | भर्तृहरि नीतिशतकम

Bhartṛihari's three Satakas (the figures 1., 2., 3. after Bh. denoting Sṛingâraº, Nîtiº, and Vâirâgyaº). -Oriental Publishing Company. SrigƒÅra--Nirnaya Sagara, 1925. नीतिशतकम् भर्तृहरि के तीन प्रसिद्ध शतकों जिन्हें कि 'शतकत्रय' कहा जाता है, में से एक है। इसमें नीति सम्बन्धी सौ श्लोक हैं। नीतिशतक में भर्तृहरि ने अपने अनुभवों के आधार पर तथा लोक व्यवहार पर आश्रित नीति सम्बन्धी श्लोकों की रचना की है। एक ओर तो उसने अज्ञता, लोभ, धन, दुर्जनता, अहंकार आदि की निन्दा की है तो दूसरी ओर विद्या, सज्जनता, उदारता, स्वाभिमान, सहनशीलता, सत्य आदि गुणों की प्रशंसा भी की है। नीतिशतक के श्लोक संस्कृत विद्वानों में ही नहीं अपितु सभी भारतीय भाषाओं में समय-समय पर सूक्ति रूप में उद्धृत किये जाते रहे हैं। संस्कृत विद्वान और टीकाकार भूधेन्द्र ने नीतिशतक को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया है, जिन्हें 'पद्धति' कहा गया है- 1) मूर्खपद्धति 2)विद्वत्पद्धति 3)मान-शौर्य-पद्धति 4)अर्थपद्धति 5)दुर्जनपद्धति 6)सुजनपद्धति 7)परोपकारपद्धति 8)धैर्यपद्धति 9)दैवपद्धति 10)कर्मपद्धति  
Variations : भ. नी.; भर्तृ. नीति; Bh.; Bh.

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