करी गोपालकी सब होई ।
जो अपनौं पुरुषारथ मानत, अति झूठौ है सोइ ॥ १ ॥
साधन मंत्र-यंत्र उद्यम बल, ये सब डारौ धोइ ।
जो कुछ लिखि राखी नँदनंदन, मेटि सकै नाहिं कोइ ॥ २ ॥
दु:ख सुख लाभ अलाभ समुझि तुम, कतहिं मरत हौ रोइ ।
‘सूरदास’ स्वामी करुनामय , श्याम-चरन मन पोइ ॥ ३ ॥