भज मन चरण कमल अविनासी ॥ टेर ॥
जेताई दीसे धरण गगन बिच, तेताई सब उठ जासी ।
कहा भयो तीरथ-व्रत कीन्हें, कहा लिये करवत -कासी ॥१॥
इण देही का गरब न करणा, माटी में मिल जासी ।
यों संसार चहर की बाजी, साँझ पड्याँ उठ जासी ॥२॥
कहा भयो है भगवा पहर् याँ, घर तज भजे संन्यासी ।
जोगी होय जुगत नहिं जाणी, उलट जनम फिर आसी ॥३॥
अरज करुँ अबला कर जोड़े, श्याम तुम्हारी दासी ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, काटो जम की फाँसी ॥४॥