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कैसो केल रच्यो मेरे द...

विविध - कैसो केल रच्यो मेरे द...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


कैसो केल रच्यो मेरे दाता, जित देखूँ उत तू ही तूँ ।

कैसो भूल जगतमें डारी, साबित करणी कर रह्यो तूँ ॥ टेर॥

नर नारी में एक ही कहिए, दोय जगत ने दर्शे तूँ ।

बालक होय रोवण ने लाग्यो, माताँ बन पुचकारो तूँ ॥१॥

कीड़ी में छोटो बन बैठयो, हाथी में ही मोटो तूँ ।

होय मगन मस्ती में डोले, महावत बन कर बैठयो तूँ ॥२॥

राजघराँ राजा बन बैठयो, भिखयाराँ में मँगतो तूँ ।

होय झगड़ालू झगड़वा लाग्यो, फौजदार फौजाँ में तूँ ॥३॥

देवल में देवता बन बैठयो, पूजामें पूजारी तूँ ।

चोरी करे जब बाजे चोरटो, खोज करन में खोजी तूँ ॥४॥

राम ही करता राम ही भरता, सारो खेल रचयो तूँ ।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, उलट खोज कर पायो तूँ ॥५॥

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Last Updated : January 22, 2014

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