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सुने री मैंने निरबल क...

विविध - सुने री मैंने निरबल क...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


सुने री मैंने निरबल के बल राम ।

पिछली साख भरुँ संतनकी, आड़े सँवारे काम ॥१॥

जब लगि गज बल अपनो बरत्यो नेक सर् यो नहिं काम ।

निरबल ह्वै बल राम पुकार् यो, आये आधे नाम ॥२॥

द्रुपद-सुता निरबल भइ ता दिन, तजि आये निज धाम ।

दुस्सासनकी भुजा थकित भई, बसनरुप भये स्याम ॥१॥

अप-बल तप-बल और बाहु-बल,चौथो है बल दाम ।

‘सूर’ किसोर कृपातें सब बल, हारेको हरिनाम ॥४॥

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Last Updated : January 22, 2014

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