सुने री मैंने निरबल के बल राम ।
पिछली साख भरुँ संतनकी, आड़े सँवारे काम ॥१॥
जब लगि गज बल अपनो बरत्यो नेक सर् यो नहिं काम ।
निरबल ह्वै बल राम पुकार् यो, आये आधे नाम ॥२॥
द्रुपद-सुता निरबल भइ ता दिन, तजि आये निज धाम ।
दुस्सासनकी भुजा थकित भई, बसनरुप भये स्याम ॥१॥
अप-बल तप-बल और बाहु-बल,चौथो है बल दाम ।
‘सूर’ किसोर कृपातें सब बल, हारेको हरिनाम ॥४॥