नाम लिया हरि का जिसने, तिन और का नाम लिया न लिया ॥ टेर॥
जड़ चेतन सब जगजीवन को, घट में अपने सम जान सदा,
सब का प्रतिपालन नित्य किया, तिन बिप्रन दान दिया न दिया ॥
काम किये परमारथ के, तनसे मनसे धनसे करके ,
जग अन्दर कीरति छाय रही, दिन च्यार विसेस जिया न जिया ॥
जिस के घरमें हरि की चर्चा नित होवत है दिन रात सदा ,
सतरंग कथामृत पान किया, तिन तीरथ नीर पिया न पिया ॥
गुरु के उपदेस समागम से, जिनके अपने घट भीतर में,
ब्रह्मानन्द सरुप को जान लिया, तिन साधन योग किया न किया ॥