डरते रहो यह जिन्दगी, बेकार ना हो जाय ।
सपनेमें भी किसी जीवका, अपकार ना हो जाय ॥ १ ॥
पाया है तन अनमोल, सदाचारके लिये ।
विषयोमें फँसके कहीं, अनाचार ना हो जाय ॥ २ ॥
सेवा करो सब देशकी, शुभ- कर्म हरि-भजन ।
इतना भी करके पीछे, अहंकार ना हो जाय ॥ ३॥
मंजिल असल मुकामकी, तय करनी है तुम्हें ।
इस ठग नगरीमें आयके, गिरफ्तार ना हो जाय ॥ ४ ॥
‘माधव’ लगी है बाजी, माया मोह- जालसे ।
धोखेमें फँसके अबके, कहीं हार ना हो जाय ॥ ५ ॥