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मैं तो हूँ भगतनको दास...

विविध - मैं तो हूँ भगतनको दास...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


मैं तो हूँ भगतनको दास भगत मेरे मुकुट मणि ॥ टेर॥

मोकूँ भजे भजूँ मैं उनको हूँ दासनको दास ।

सेवा करे करुँ मैं सेवा हो सच्चा विश्वास -

यही तो मेरे मनमें ठणी ॥१॥

जूठा खाऊँ गले लगाऊँ नहीं जातिको ध्यान ।

आचार-विचार कछु नहीं देखूँ, देखूँ मैं प्रेम-सम्मान-

भगत-हित नारि बणी ॥२॥

पग चाँपू और सेज बिछाऊँ नौकर बनूँ हजाम ।

हाकूँ बैल बनूँ गडवारो बिन तनख्वा रथवान -।

अलखकी लखता बणी ॥३॥

अपनो परण बिसार भक्तको पूरो परण निभाऊँ ।

साधु जाचक बनूँ कहे सो बेचे तो बिक जाऊँ-

और क्या कहूँ घणी ॥४॥

गरुड़ छोड़ बैकुण्ठ त्यागके, नंगे पाँवों धाऊँ ।

जहाँ-जहाँ भीड़ पड़े भक्तोंमें, तहाँ-तहाँ दौड़ा जाऊँ-

खबर नहीं करुँ अपणी ॥५॥

जो कोई भक्ति करे कपटसे उसको भी अपनाऊँ ।

साम, दाम और दण्ड-भेदसे सीधे रस्ते लाऊँ-

नकलसे असल बणी ॥६॥

जो कुछ बनी बनेगी उसमें कर्ता मुझे ठैरावे ।

नरसी हरि गुण चरणन चेरो, औरन सीस नवावे- ।

पतिबरता एक धणी ॥७॥

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Last Updated : January 22, 2014

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