मैं तो हूँ भगतनको दास भगत मेरे मुकुट मणि ॥ टेर॥
मोकूँ भजे भजूँ मैं उनको हूँ दासनको दास ।
सेवा करे करुँ मैं सेवा हो सच्चा विश्वास -
यही तो मेरे मनमें ठणी ॥१॥
जूठा खाऊँ गले लगाऊँ नहीं जातिको ध्यान ।
आचार-विचार कछु नहीं देखूँ, देखूँ मैं प्रेम-सम्मान-
भगत-हित नारि बणी ॥२॥
पग चाँपू और सेज बिछाऊँ नौकर बनूँ हजाम ।
हाकूँ बैल बनूँ गडवारो बिन तनख्वा रथवान -।
अलखकी लखता बणी ॥३॥
अपनो परण बिसार भक्तको पूरो परण निभाऊँ ।
साधु जाचक बनूँ कहे सो बेचे तो बिक जाऊँ-
और क्या कहूँ घणी ॥४॥
गरुड़ छोड़ बैकुण्ठ त्यागके, नंगे पाँवों धाऊँ ।
जहाँ-जहाँ भीड़ पड़े भक्तोंमें, तहाँ-तहाँ दौड़ा जाऊँ-
खबर नहीं करुँ अपणी ॥५॥
जो कोई भक्ति करे कपटसे उसको भी अपनाऊँ ।
साम, दाम और दण्ड-भेदसे सीधे रस्ते लाऊँ-
नकलसे असल बणी ॥६॥
जो कुछ बनी बनेगी उसमें कर्ता मुझे ठैरावे ।
नरसी हरि गुण चरणन चेरो, औरन सीस नवावे- ।
पतिबरता एक धणी ॥७॥