मैं तो गिरधर के रंग राती ॥ टेर॥
पचरंग चोला पहिर सखीरी, झुरमुट खेलन जाती ।
झुरमुट में मोहि मिलियो साँवरो, खोल मिली तन गाती ॥१॥
और सखी मद पी-पी माती, मैं बिन पिये रहूँ माती ।
मैं रस पीऊँ प्रेम भट्टी को, छकी रहूँ दिन राती ॥२॥
कोई के पिया परदेस बसत हैं, लिख-लिख भेजत पाती ।
मेरे पिया मेरे घट में बिराजे, बात करुँ दिन राती ॥३॥
सुरति निरति का दिवला सँजोऊँ, मनसा की करलूँ बाती ।
अगम घाणी से तेल कढ़ाऊँ, बाल रही दिन राती ॥४॥
पीहर रहूँ ना सासरे में, प्रभु से सैना लगाती ।
मीरा कह प्रभु गिरधर नागर, चरण रहूँ दिन राती ॥५॥