दो दिनका जगमें मेला, सब चला-चलीका खेला ॥
कोइ चला गया कोई जावै, कोइ गठरी बाँध सिधावै ।
कोई खड़ा तैयार अकेला, सब चला-चलीका खेला ॥ १ ॥
कर पाप-कपट, छल-माया, धन लाख-करोड़ कमाया ।
सँग चले न एक अधेला, सब चला-चलीका खेला ॥ २ ॥
सुत-नारि, मातु-पितु, भाई अन्त सहायक नाहीं ।
क्यों भरे पापका ठेला, सब चला-चलीका खेला ॥ ३ ॥
यह नश्वर सब संसारा, कर भजन ईशका प्यारा ।
‘ब्रह्मानंद’ कहे सुन चेला, सब चला-चलीका खेला ॥ ४ ॥