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उड़ जायगा रे हंस अकेला...

विविध - उड़ जायगा रे हंस अकेला...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


उड़ जायगा रे हंस अकेला, दिन दोयका दर्शन-मेला ॥ टेर ॥

राजा भी जायगा, जोगी भी जायगा, गुरु भी जायगा चेला ॥१॥

माता-पिता भाई-बन्धु भी जायेंगे, और रुपयोंका थैला ॥२॥

तन भी जायगा , मन भी जायगा, तू क्यों भया है गैला ॥३॥

तू भी जायगा, तेरा भी जायगा, यह सब मायाका खेला ॥४॥

कोड़ी रे कोड़ी माया जोड़ी, संग चलेगा न अधेला ॥५॥

साथी रे साथी तेरे पार उतर गये, तू क्यों रहा अकेला ॥६॥

राम-नाम निष्काम रटो, नर, बीती जात है बेला ॥७॥

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Last Updated : January 22, 2014

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