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उठ जाग मुसाफिर भोर भई...

विविध - उठ जाग मुसाफिर भोर भई...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है ।

जो सेवत हैसो खोवत है, जो जागत है सो पावत है ॥ टेर ॥

टुक नीदसे अँखियाँ खोल जरा, और अपने प्रभुसे ध्यान लगा ।

यह प्रीति करनकी रीति नहीं, प्रभु जागत हैं तू सोवत है ॥ १ ॥

जो कल करना है आज करले, जो आज करना है वो अब कर ले ।

जब चिड़ियोंने चुग खेत लिया, फिर पछिताये क्या होवत है ॥ २ ॥

नादान भुगत अपनी करनी, ऐ पापी पाप में चैन कहाँ ।

जब पापकी गठरी शीरा धरी, अब शीरा पकड़ क्यों रोवत है ॥ ३ ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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