मूरख छाड़ वृथा अभिमान ।
औसर बीत चल्यो है तेरो, दो दिनको मेहमान ॥ १ ॥
भूप अनेक भये पृथ्वी पर, रुप तेज बलवान ।
कौन बच्यो या काल-व्याल तें, मिट गये नाम निशान ॥ २ ॥
धवल-धाम धन गज रथ सेना, नारी चन्द्र समान ।
अन्त समय सब ही को तज कर, जाय बसे शमशान ॥ ३ ॥
तज सत-संग भ्रमत विषयनमें, जा विधि मरकट श्वान ।
छिन भर बैठि न सुमिरन कीन्यो, जासों हो कल्यान ॥ ४ ॥
रे मन मूढ़ अनत जनि भटकै, मेरो कह्यो अब मान ।
‘नारायण’ ब्रजराज कुँवससों, बेगहिं कर पहिचान ॥ ५ ॥