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म्हारा नटराजा , थाँरे न...

विविध - म्हारा नटराजा , थाँरे न...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


म्हारा नटराजा, थाँरे नचायो नाचूँ ।

प्यारा गिरधरलाल, थाँरे नचायो नाचूँ ॥ टेर॥

थाँरे घर में रहूँ निरन्तर, थाँरी हाट चलावूँ ।

थाँरे धन से थाँरे जन की सेवा टहल बजावूँ ॥१॥

ज्याँ रँगरा कपड़ा पहिरावे, वैसोइ स्वाँग बणावूँ ।

जैसा बोल बुलावे मुखसूँ वैसीहि बात सुणावूँ ॥२॥

रुखा सूखा जो कछु देवे, थाँरे भोग लगावूँ ।

खीर परुस या छाछ राबड़ी, सबड़ प्रेमसे पावूँ ॥३॥

घरका प्राणी कयो न माने, मन मन खुशी मनावूँ ।

थाँरे इण मंगल विधान में, मैं क्यूँ टाँग अड़ावूँ ॥४॥

जो तूँ ठोकर मार गिरावे, लकड़ी ज्यूँ गिर ज्यावूँ ।

जो तूँ माथे उपर बिठावे, तो भी न सरमावूँ ॥५॥

कोस हजार पकड़ ले ज्यावे, दौड़यो दौड़यो जावूँ ।

जो तूँ आसण मार बिठावे, गोडो- नाँय हिलावूँ ॥६॥

जो तूँ तन के रोग लगावे, ओढ़ सिरस सो ज्यावूँ ।

जो तूँ काल रुप बण आवे, लपक गोदमें आवूँ ॥७॥

उलटो सुलटो जो कछु कर ले, मंगल रुप लखाऊँ ।

थाँरी मन चाही में प्यारा, अपनी चाह मिलावूँ ॥८॥

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Last Updated : January 22, 2014

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