म्हारा नटराजा, थाँरे नचायो नाचूँ ।
प्यारा गिरधरलाल, थाँरे नचायो नाचूँ ॥ टेर॥
थाँरे घर में रहूँ निरन्तर, थाँरी हाट चलावूँ ।
थाँरे धन से थाँरे जन की सेवा टहल बजावूँ ॥१॥
ज्याँ रँगरा कपड़ा पहिरावे, वैसोइ स्वाँग बणावूँ ।
जैसा बोल बुलावे मुखसूँ वैसीहि बात सुणावूँ ॥२॥
रुखा सूखा जो कछु देवे, थाँरे भोग लगावूँ ।
खीर परुस या छाछ राबड़ी, सबड़ प्रेमसे पावूँ ॥३॥
घरका प्राणी कयो न माने, मन मन खुशी मनावूँ ।
थाँरे इण मंगल विधान में, मैं क्यूँ टाँग अड़ावूँ ॥४॥
जो तूँ ठोकर मार गिरावे, लकड़ी ज्यूँ गिर ज्यावूँ ।
जो तूँ माथे उपर बिठावे, तो भी न सरमावूँ ॥५॥
कोस हजार पकड़ ले ज्यावे, दौड़यो दौड़यो जावूँ ।
जो तूँ आसण मार बिठावे, गोडो- नाँय हिलावूँ ॥६॥
जो तूँ तन के रोग लगावे, ओढ़ सिरस सो ज्यावूँ ।
जो तूँ काल रुप बण आवे, लपक गोदमें आवूँ ॥७॥
उलटो सुलटो जो कछु कर ले, मंगल रुप लखाऊँ ।
थाँरी मन चाही में प्यारा, अपनी चाह मिलावूँ ॥८॥