मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अभंग संग्रह आणि पदे|संत बहेणाबाईचे अभंग| ३६५ ते ३७९ संत बहेणाबाईचे अभंग १ ते १० ११ ते २० २१ ते २९ ३० ते ४० ४१ ते ५० ५१ ते ५४ ५५ ते ६० ६१ ते ७० ७१ ते ८० ८१ ते ९० ९१ ते १०० १०१ ते ११० १११ ते १२० १२१ ते १३० १३१ ते १४२ १४७ ते १६० १६१ ते १७० १७१ ते १८० १८१ ते १९४ १९६ ते २०० २०१ ते २१० २११ ते २२० २२१ ते २३० २३१ ते २४० २४१ ते २५० २५१ ते २६० २६१ ते २७० २७१ ते २८० २८१ ते २९० २९१ ते ३०१ ३०२ रे ३१० ३११ रे ३१८ ३१९ ते ३२६ ३२७ ते ३३७ ३२८ ते ३४४ ३४५ ते ३४९ ओव्या पद ३५३ ते ३६२ ३६३ ते ३६४ ३६५ ते ३७९ ३८० ते ३९० ३९१ ते ४०० ४०१ ते ४०७ ४०८ ते ४२० ४२१ ते ४२५ ४२६ ४२७ ४२८ ते ४२९ ४३० ते ४३३ ४३४ ते ४४५ ४४६ ते ४५५ ४५६ ते ४६९ ४७० ते ४८० ४८१ ते ४९० ४९१ ते ५०० ५०१ ते ५१० ५११ ते ५२० ५२१ ते ५३० ५३१ ते ५४४ आरती रामाची आत्मनिवेदन ५४७ ते ५६० ५६१ ते ५६९ संतवर्णनपर ५७१ ते ५७४ ५७५ ते ५८६ पंचतत्त्वांचा पाळणा ( जोगी ) फुगडी पिंगा झिंपा हमामा हुंबरी ५९६ ते ६०७ ६०८ ते ६१५ आरती श्रीभगवद्गीतेची आरती श्रीरामाची ( शेजारती ) ६१८ ते ६५० आरती चंद्राची आरती सद्गुरूची ६५१ ते ६९१ संतमहात्म्यपर संशोधनातून नवीन मिळालेले अप्रकाशित अभंग हिंदी पदे - ३६५ ते ३७९ संत बहेणाबाईचे अभंग Tags : abhang marathibahenabaiअभंगबहेनाबाईमराठी हिंदी पदे - ३६५ ते ३७९ Translation - भाषांतर ३६५. देवकी कहे सुन बात भ्रतारो सुनिके आवे कंस रे । जानि मनमें लेकर होतो श्रीधर नइ जसवदा पास रे ॥१॥झबके जावोजी तुम वसुदेवा आयेंगे कंसबिखार । डंखविखे प्राण लेवे सबके, कहा करो बिचार ॥२॥आधी रात भरी हे जमुना आये मेघ तुसार । पाव में बेरी कुलुपो कुलुपो कैसे जाना नंद के बार ॥३॥बली बली बारो राखते हैं अब कहा करे अविनाश रे । देखे कंस तो मोरसिस प्राणकु अविनाश रे ॥४॥अपने कर हरि लेकर देवकी देत भ्रतारो हात रे । बेरी तबही तूटि परी है बंधन तूटो रात रे ॥५॥बहेणि कहे जिसे कृष्णकृपा उसे कहा करे जमपास रे । बेरी कुलुपो आपही खोलत जावत है अविनाश रे ॥६॥३६६. ये गोकुल चल हो कहत मुर्हारी । मेघतुसार निबारे फनिधर सेवा करे बलहारी ॥१॥बसुवा अपने कर दोन्हो पालख योंही कीन्हों । जमुना के तट आयके देखें पूरन नीर जानो ॥२॥पूरन रूप यों देखें जमुना जानिके सबही भाव । दोही ठोर भई जमुना - नीर तब जानत यों हरिभाव ॥३॥जैसो परवत बैसो नीर हवो जानिके आस । पाव लगे जमु कहे माकु जायगे सब दोस ॥४॥जिस चरन को तीरथ शंकर माथा रखिया नीर । वो अब चरना प्राप्त भये होवे जान उधार ॥५॥बहेणि कहे जिसकू हरि भावे ताकू कालही धाके । बसुदेवाकर आपही मुरारि काहेकु संकट वाके ॥६॥३६७. बसुदेवा तब बारन आवे सोवे गोकुल नंद । दरवाजा आपे खोलत है रे आवत है गोविंद ॥१॥जिस दरवाजे लोहेके साकल - कुलुपो तोडि रखाये । सब जन सेवक सोवे तबही बसुदेवा घर जाये ॥२॥तब ये माया प्रगट भई है जसोदा प्रसुत भई है । और सोवे माया टोर धरी है ॥३॥जसोदा कू जहॉं निद्रा लगी है जानिके गोकुलनाथ । आवे घर के बसुदेवा ताहॉं माया लीनी हाथ ॥४॥धाकत है मन, कापत है तन; फेर चले मथुराकू । निकसे तब या देखत सक कुलुपो होवत वाकू ॥५॥बहेणि कहे तब माया लेकर आया फेर मथुरा । देवकी कर लेकर दीन्ही दरबाजे रखे फेरा ॥६॥३६८. बसुदेवा जब देखे हरिकू चार भुजा श्रीमुरारी । कहत है श्याम तुमारो दरशन वांच्छित है दिन सारी ॥१॥तमकू बचन सुनावे दारो सेबक सोवा । तुम रूप छोडो देवा हमसे कंसकु है दावा ॥२॥अबही सुनो गोपाल भयोजी अब मारत कंस । सवही लरके मारे जो जानो रोवत है हरि पास ॥३॥चार भुजा तुमको गोविंद चक्र गदा और शंख । पद्महि कौस्तुभ देख तब तो मारेगा छोरो भेख ॥४॥जय कृष्ण कृपाल स्वामी वचन सुनोजी हमारो । उस रूपो जब देखे कंसा प्राणसु लेवे तेरो ॥५॥बहेणि कहे हरि प्रगट भयो है, उदरमें कारण कौन । पुण्यकी बेला प्रगट भई है वोही कारण जान ॥६॥३६९. जय जय कृष्ण कृपाल भयोजी नहीं किये जप तप दान । जै गृहि ब्राह्मणपूजन नहिं रे भूमि नहीं गोदान ॥१॥तुम क्यो प्रगट भयो कहा जानो । अर्जन वंदन नहिं कछु पालो होय अचंबा मान ॥२॥अन्न दियो ग्यारसि नहिं रे देव न पूजो भाव । तीरथ यात्रा नहीं कछु जोडी कहॉं भयो नवलाव ॥३॥बनधारी और निरबानो है पत्रहि खावत जान । नंगे पॉंव नंगा देह बन बन जावत रान ॥४॥परबतमाहे जोगी होकर छोड दियो संसार । धूमरपाने पंचाग्नि - साधने बैठे जलकी धार ॥५॥बहेणि कहे कहॉं जनमको संचित प्राप्त भयो इस बेला । चारभुजा हरि मुजको दिखाया येही कहो घननीला ॥६॥३७०. सुनो कहत है श्याम सुजानो पुण्य बिना नहीं कोई । जिसके पल्लो जप तप दान पावे दरसन वोही ॥१॥तुम सब बात सुनोजी चित्तकु ठोर धरोजी । हरिके आयो पेटे येही बात कहोजी ॥२॥फूल बिना फल, जल बिना अंकुर, बिनपुरूष नहीं छाया । जलबिन कमलिनि, रविबिन तेज, आगे तहॉं सब आया ॥३॥तरू तहॉं बीज, बीज तहॉं तरू । है दीपके पास प्रकाश । नर तॉंही नारी, जल तॉंही थल है, पुण्य ताहॉं अविनाश ॥४॥बहेणि कहे जिसकू हरि आवे वोहि है पुण्य की रास । शांती क्षमा उसके घर सोवे सबही संपति दास ॥५॥३७१. ये गोविंद प्राप्त भयो कहा काज । व्रत नहि जानूं तप नहि जानूं कारागृहमें बिराज ॥१॥पूरब जनम तप करत है तब बरद मिलो बनमाली । मेरे पेटमें प्रगटो निरगुन येही मॉंगत बाली ॥२॥बहुतहि निकट मॉंडी तब हरि करूनाकर कहे जान । तीन जनममें मेरे उदरमें आऊं बरद दियो उस रात ॥३॥उस तप के लीये उदर सु आवे जनम गये पीछे दोन । तीजो जनम यो कृष्ण भयो है वोही तपके कारन ॥४॥तपव्रतदान बिन बिहिन सेवा कृष्ण न आवे संग । संग बिना नहि मुक्ति जिवाकूं येही कहत श्रीरंग ॥५॥बहेणि कहे उस वसुदेव - देवकीकु देव मुक्ति । वयसों तप बिन प्राप्त नहीं वो साधूकी संगती ॥६॥३७२. ये अजब बात सुनाई भाई । गरूडको पांख हिराये कागा लक्ष्मी काहे चोरन गाई ॥१॥ये सूरज को बिंब अंधारे सोवे चंदरकु आग जलावे । राहुकु गिर्हो भोगी कहा रे अमृत ले मर जावे ॥२॥कुबेर रोवे धनके आस हनुमान जोरू मंगावे । वैसो सबही झूठा है निंदाकी बात सुनावे ॥३॥सुमींदर तान्हो पीरत कैसो साधू मॉंगे दान । बहेणि कह जन निंदक है रे वाको साच न मान ॥४॥३७३. सब ब्रजनारी सुनो हरि जनमो नंद - जसोदा पेट । चलवो चल उस हरिकु देखें मिल निकलत है थाट ॥१॥नारी आरती कर लें गावत नाम संगसे लागा छंद । हरदिर तेल लिये करमाहे मिलने चालत गोबिंद ॥२॥अपने अपने घर तोरन गुरिया धरत है जनमे सुत । नंद का भाग कोई न जाने भेटी होवे अनंत ॥३॥घर घर गावत राग रागिनी ठोर ठोर भयी भार । वो सुख कहॉं कहूं अपने मुखसे आवे न जाने पार ॥४॥द्विज जन नारी मंगल गावत चीर लुटावे भाट । गौ, धरति और सुन्ना दान करत हे बाट ही बाट ॥५॥कुंकुम केसर चोवा - चंदन फूल गुलालकी शोभा । देखत इंद्र फणेंद्र महेंद्र गावत है सब रंभा ॥६॥नाद न भेरी तालही जब घट नादमें अंबर गाजे । नाना सूर बजावत छंदे ढोल दमामें बाजे ॥७॥बहेणि कहे हरिजनम को सुख कहा कहूं हरि जाने । छंद प्रबंध सुनावत नारी देहभाव नहीं जाने ॥८॥३७४. कंटक को मल्लमर्द । दैतन को सिर छेद । सुत तेरो नंद कृष्ण । सोही जानी है ॥१॥गोपिकाको प्राणनाथ । भक्तन कु करे सनाथ । शास्तर की ऐसी बात । संत जानी है ॥२॥धर्म कु रक्षण आयो । पापकु सब डारि दियो है । वोही कृष्ण सुत भयो । बात ये सत्य मानी है ॥३॥सुत मत कहो नंद । ब्रह्म सो येहि गोविम्द है । बहेणि भाट का प्रबंध । सत्य सुजानि है ॥४॥३७५. जिस आस जोगी जग । जिस आस छोड भाग । जिस आस ले बैराग । बनवास जात है ॥१॥जिस आस पान खावे । जिस आस नंगे जावे । जिस आस धरती सोवे । जपतपही करतु है ॥२॥जिस आस सिर मुंडे । जिस आस मूंछ खांडे । जिस आस होत रंडे । जलमें वसतु है ॥३॥वोही सत्य जान नंद । प्रगट भयो है गोविंड । पुण्यही तेरो अगाध । बहेणि ये कहत है ॥४॥३७६. जमुनाके तट धेनु चरावत । गावत है गोवाल री । गीत प्रबंध हास्य विनोद । नाचत है श्रीहरि ॥१॥माय री, देखत मैं नंदलाल । कासे पीत बसन है झलाल । कानों मे कुंडलदेती ढाल । सिरपर मोरपिसा चंदलाल ॥२॥अबीर गुलाल सबके माथा । हर सुवास पिनाये । जाई जुई चंपति कोमल । चंदन चंपक लाये ॥३॥छंद धीमा धीमा सुनावत है । हरि बंध गयो मेरे प्राण । बहेणि कहे सब भूल गये । मेरा हरिसु लगा है मन ॥४॥३७७. मरनसो हक है रे बाबा मरनसो हक है ॥धृ०॥काहे डरावत मोहे बाबा उपजे सो मर जाये भाई मरन धर सा कोई बाबा ॥१॥जनन मरन ये दोनो भाई, मोकले तन के साथ । मौति पुरे सो आपही मरेंगे बदलाम की झूटी बात ॥२॥जैसाहि करना वैसाहि भरना संचित येहि प्रमाण । तारनहार तो न्यारा है रे हाकिम वो रहिमान ॥३॥बहेणि कहे वो अपनी बाता काहे करे डौर ( गौर ) । ग्यानी होवे तो समज लेवे मरन करे आप दूर ॥४॥३७८. सच्चा साहेब तू येक मेरा काहे मुझे फिकिर । महाल मुलुख परवा नहीं क्या करूं पील पथीर ॥१॥गोविंद चाकरी पकरी, पकरी पकरी तेरी ॥धृ०॥साहेब तेरी जिकिर करते मायापरदा हुवा दूर । चारो दिल भाई पीछे रहते हैं बंदा हुजूर ॥२॥मेरा भीपन सटकर साहेब पकरे तेरे पाय । बहेणि कहे तुमसे गोविंद तेरे पर बलि जाय ॥३॥३७९. देव करे सो कहॉं न होवे सुन रे मूढो अंध । सीला मनुख भई जिस पावो गणिका छुटो बंद ॥१॥वैसी राम बढाई तुम सब जानो भाई ॥धृ०॥रामण मारके बिभीखन लंका थपाई राज्य कमाई । राक्षसकू अमराइ दीन्ही ये वैसी राम नवाई ॥२॥पहरादों बिख समीदर बुरना परबत लोट दिया है । आगी जलावे पिता उसका सत्त्वसु राम रखावे ॥३॥पानी माहे गजकू छोडे सावज मारन भाई । उसका राख्यो कुटनी मुक्तो करता राम सो वोही ॥४॥मीराको बिख अमृत किया पत्थरकू दूध पिलाया । स्वामी बिख चढे तब रामराम ऐसो बिरद पढाया ॥५॥शनि को रूप लिया राम राखो भक्त को सीस । ब्रह्मन सुदामा सुनेकी नगरी वैसी करे जगदीश ॥६॥वैसे भगत बहुत रखे तुम कहा कहुजी बढाई । बहेणी कहे तुम भगत कृपाल हो जो करे सो सब होई ॥७॥ N/A References : N/A Last Updated : February 22, 2017 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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