१३६.
राग सोरठा
लोचन हरत अंबुज मान।
चकित मनमथ सरन चाहत, धनुष तजि निज बान ॥१॥
चिकुर कोमल कुटिल राजत रुचिर बिमल कपोल।
नील नलिन सुगंध ज्यौं, रस थकित मधुकर लोल ॥२॥
स्याम उर पै परम सुंदर सजल मोतिन हार।
मनौ मरकत सैल तैं बहि चली सुरसरि धार ॥३॥
सूर कटि पटपीत राजत सुभग छबि नँदलाल।
मनौ कनक लता अवलि बिच तरल बिटप तमाल ॥४॥
१३७.
राग गौरी
ढोटा कौन कौ यह री।
स्त्रुति मंडल मकराकृत कुंडल, कंठ कनक दुलरी ॥१॥
तन घन स्याम, कमल दल लोचन, चारु चपल तुलरी।
इंदु बदन, मुसुकानि माधुरी, अलकैं अलि कुल री ॥२॥
उर मुक्ता की माल, पीत पट, मुरली सुर गवरी।
पग नूपुर मनि जटित रुचिर अति, कटि किंकिनि रव री ॥३॥
बालक बृन्द मध्य राजत है, छबि निरखत भुररी।
सोइ सँजीवनि सूरदास की, महरि रहै उर री ॥४॥
१३८.
वे देखौ, आवत दोउ जन।
गौर स्याम नट नील पीत पट, मनौ मिले दामिनि घन ॥१॥
लोचन बंक बिसाल कमल दल,
चितवत चितै हरत सब कौ मन।
कुंडल स्त्रवन कनक मनि भूषित,
जटित लाल अति लोल मीन तन ॥२॥
चंदन चित्र बिचित्र अंग पै,
कुसुम सुबास धरैं नँदनंदन।
बलि बलि जाउँ चलैं जिहिं मारग,
संग लगाइ लेत मधुकर गन ॥३॥
धनि यह भूमि जहाँ पगु धारे,
जीतैंगे रिपु आज रंग रन।
सूरदास वे नगर नारि सब,
लेति बलाइ वारि अंचल सन ॥४॥
१३९.
राग नट
वे हैं रोहिनी सुत राम।
गौर अंग सुरंग लोचन, प्रलै जिन के ताम ॥१॥
एक कुंडल स्त्रवन धारी, द्योत दरसी ग्राम।
नील अंबर अंग धारी, स्याम पूरन काम ॥२॥
ताल बन इन बच्छ मार्यौ, ब्रह्म पूरन काम।
सूर प्रभु आकरषि, तातैं सँकरषन है नाम ॥३॥
१४०.
राग रामकली
ए हैं देवकी सुत स्याम।
मुकुट सिर सुभ, स्त्रवन कुंडल, करत पूरन काम ॥१॥
महा जे खल तिनहुँ तैं अति तरत है इक नाम।
ब्रह्म पूरन सकल स्वामी, रहे ब्रज निज धाम ॥२॥
नंद पितु माता जसोदा, बाँधि ऊखल दाम।
लकुट लै लै त्रास दीन्हौ, कर्यौ इन पै ताम ॥३॥
ताहि मान्यौ हेत करि इन, हँसति ब्रज की बाम।
सूर धनि नँद, धन्य जसुमति, धन्य गोकुल गाम ॥४॥