६ .
राग आसावरी
घुटुरुन चलत स्याम मनि आँगन ,
मातु -पिता दोउ देखत री।
कबहूँ किलकि तात मुख हेरत ,
कबहूँ मातु मुख पेखत री ॥१॥
लटकत लटकत ललित भाल पै ,
काजर बिंदु भ्रुव ऊपर री।
यह सोभा नैनन भरि देखैं ,
नहिं उपमा तिहुँ भू पर री ॥२॥
कबहुँक दौरि घुटुरुवन लपकत ,
गिरत , उठत , पुनि धावै री।
इत तै नंद बुलाइ लेत हैं ,
उत तैं जननि बुलावै री ॥३॥
दंपति होड करत आपुस मैं , स्याम खिलौना कीन्है री ।
सूरदास प्रभु ब्रह्म सनातन ,
सुत हित करि दोउ लीन्है री ॥४॥
७ .
राग बिलावल
सोभित कर नवनीत लिएं।
घुटुरन चलत रेनु तन मंडित , मुख लेप किएं ॥१॥
चारु कपोल , लोल लोचन , गोरोचन तिलक दिएं।
लट लटकनि मनौ मत्त मधुप गन माधुरि मधुहि पिए॥२॥
कठुला कंठ , वज्र केहरि नख , राजत रुचिर हिए।
धन्य ’ सूर ’ एकौ पल यहि सुख , का सत कल्प जिए ॥३॥
८ .
राग कान्हरौ
आँगन खेलत घुटुवनि धाए।
नील जलद अभिराम स्याम तन ,
निरखी जननि दोउ निकट बुलाए ॥१॥
बंधुक सुमन अरुन पद पंकज ,
अंकुश प्रमुख चिन्ह बनि आए।
नूपुर कलरव मनु हंसन सुत ,
रचे नीड दै बाहँ बसाए ॥२॥
कटि किंकिनि बर हार ग्रीव दर ,
रुचिर बाहु भूषन पहिराए।
उर श्रीबच्छ मनोहर हरि नख ,
हेम मध्य मनि गन बहु लाए ॥३॥
सुभग चिबुक , द्विज , अधर , नासिका ,
स्त्रवन , कपोल मोहि सुठि भाए।
भ्रुव सुंदर , करुना रस पूरन ,
लोचन मनहु जुगल जल जाए ॥४॥
भाल बिसाल ललित लटकन मनि ,
बाल दसा के चिकुर सुहाए।
मानौ गुरु सनि कुज आगैं करि ,
ससिहि मिलन तम के गन आए ॥५॥
उपमा एक अभूत भई तब ,
जब जननी पट पीत उढाए।
नील जलद पै उडुगन निरखत ,
तजि सुभाव मनु तडित छपाए ॥६॥
अंग अंग प्रति मार निकर मिलि ,
छबि समूह लै लै मनु छाए।
सूरदास सो क्यों करि बरनै ,
जो छबि निगम नेति करि गाए ॥७॥
९ .
राग धनाश्री
हौं बलि जाउँ छबीले लाल की।
धूसर धूरि , घुटुरुवन रेंगनि ,
बोलनि बचन रसाल की ॥१॥
छिटकी रही चहुँ जु लटुरियाँ ,
लटकन लटकनि भाल की।
मोतिन सहित नासिका नथुनी
कंठ कमल दल माल की ॥२॥
कछुक हाथ , कछु माखन लै ,
चितवनि नैन बिसाल की।
सूरदास प्रभु मगन भइ ,
ढिग न तजनि ब्रजबाल की ॥३॥
१० .
राग कान्हारौ
आदर सहित बिलोकि स्याम मुख ,
नंद अनंद रुप लिए कनियाँ।
सुन्दर स्याम सरोज नील तन
अँग अँग सुभग सकल सुखदनियाँ ॥१॥
अरुन चरन नख जोति जगमगति ,
रुन झुन करति पाइँ पैजनियाँ।
कनक रतन मनि जटित रचित कटि
किंकनि कुनित , पीतपट तनियाँ ॥२॥
पहुँची करालि , पदक उर हरि नख ,
कठुला कंठ मंजु गजमनियाँ।
रुचिर चिबुक द्विज अधर नासिका ,
अति सुन्दर राजति सुबरनियाँ ॥३॥
कुटिल भृकुटि , सुख की निधि आनान ,
कल कपोल की छबि न उपनियाँ।
भाल तिलक मसि बिंदु बिराजत ,
सोभित सीस बिंदु बिराजत ,
सोभित सीस लाल चौतनियाँ ॥४॥
मन मोहिनी तोतरी बोलनि ,
मुनि मन हरनि सु हँसि -मुसुकनियाँ।
बाल -सुभाव , बिलोल बिलोचन ,
चोरति चितौ चारु चितवनियाँ ॥५॥
निरखति ब्रज -जुबती सब ठाढी ,
नन्द सुवन छबि चंदबदनियाँ।
सूरदास प्रभु निरखी मगन भइँ ,
प्रेम बिबस कछु सुधि न अपनियाँ ॥६॥