सूतजी कहते हैं - इस प्रकार मैंने यह सम्पूर्ण नरसिंहपुराण कह सुनाया । यह सब पापोंको हरनेवाला और सम्पूर्ण दुःखोंको दूर करनेवाला है । समस्त पुण्यों तथा सभी यज्ञोंका फल देनेवाला है । जो लोग इसके एक श्लोक या आधे श्लोकका श्रवण अथवा पाठ करते हैं, उन्हें कभी भी पापोंसे बन्धन नहीं प्राप्त होता । भगवान् विष्णुको अर्पण किया हुआ यह पावन पुराण समस्त कामनाओंकी पूर्ति करनेवाला है । भरद्वाजजी ! जो लोग भक्तिपूर्वक इस पुराणका पाठ अथवा श्रवण करते हैं, उनको प्राप्त होनेवाले फलका वर्णन सुनिये । वे सौ जन्मोंके पापसे तत्काल ही मुक्त हो जाते हैं तथा अपनी सहस्त्र पीढ़ियोंके साथ ही परमपदको प्राप्त होते हैं । जो प्रतिदिन एकाग्रचित्तसे गोविन्दगुणगान सुनते रहते हैं, उनको अनेक बार तीर्थ - सेवन, गोदान, तपस्या और यज्ञ नुष्ठान करनेसे क्या लेना है । जो प्रतिदिन सबेरे उठकर इस पुराणके बीस श्लोकोंका पाठ करता है, वह ज्योतिष्टोम यज्ञका फल प्राप्तकर विष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है ॥१ - ६ १/२॥
यह पुराण परम पवित्र और आदरणीय है । इसे अजितेन्द्रिय पुरुषोंको तो कभी नहीं सुनाना चाहिये, परंतु विष्णुभक्त द्विजोंको निस्संदेह इसका श्रवण कराना चाहिये । इस पुराणका श्रवण इस लोक और परलोकमें भी सुख देनेवाला है । यह वक्ताओं और श्रोताओंके पापको तत्काल नष्ट कर देता है । मुनीश्वरगण ! इस विषयमें बहुत कहनेकी क्या आवश्यकता है । श्रद्धासे हो या अश्रद्धासे, इस उत्तम पुराणका श्रवण करना ही चाहिये । इस पुराणको सुनकर भरद्वाज आदि द्विजश्रेष्ठगण कृतार्थ हो गये । उन्होंने हर्षपूर्वक सूतजीका समादर किया । फिर सब लोग अपने - अपने आश्रमको चले गये ॥७ - ११॥
इस प्रकार सूत - भरद्वाजादि - संवादरुप श्रीनरसिंहपुराणमें इसके ' सर्वदुःखहारी माहात्म्यका वर्णन ' नामक अड़सठवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥६८॥