श्रीसहस्त्रानीकने पूछा - महामते द्विजवर मार्कण्डेयजी ! अब पुनः यह बताइये कि भगवान् विष्णुके निर्माल्य ( चन्दन - पुष्प आदि ) - को हटानेसे कौनसा पुण्य प्राप्त होता है ॥१॥
मार्कण्डेयजी बोले - राजन् ! नृसिंहस्वरुप भगवान् केशवको निर्माल्य हटाकर जलसे स्नान करानेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है तथा सम्पूर्ण तीर्थोंके सेवनका फल प्राप्तकर, विमानपर आरुढ हो स्वर्गको चला जाता है और वहाँसे श्रीविष्णुधामको प्राप्त होकर अक्षयकालपर्यन्त आनन्दका उपभोग करता है । ' भगवन् नरसिंह ! आप यहाँ पधारें - इस प्रकार अक्षत और पुष्पोंके द्वारा यदि भगवानका आवाहन करे तो राजेन्द्र ! इतनेसे भी वह मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है । देवदेव नृसिंहको विधिपूर्वक आसन, पाद्य ( पैर धोनेके लिये जल ), अर्घ्य ( हाथ धोनेके लिये जल ) और आचमनीय ( कुल्ला करनेके लिये जल ) अर्पण करनेसे भी सब पापोंसे छुटकारा मिल जाता है । नराधिप ! भगवान् नृसिंहको दूध और जलसे स्नान कराकर मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो विष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है । जो एक बार भी भगवानको दहीसे स्नान कराता है, वह निर्मल एवं सुन्दर शरीर धारणकर सुरवरोंसे पूजित होता हुआ विष्णुलोकको जाता है । जो मनुष्य मधुसे भगवानको नहलाता हुआ उनकी पूजा करता है, वह अग्निलोकमें आनन्दोपभोग करके पुनः विष्णुपुर ( वैकुण्ठधाम ) - में निवास करता है । जो स्नानकालमें श्रीनरसिंहके विग्रहको शङ्ख और नगारेका शब्द कराते हुए विशेषरुपसे घीसे स्नान कराता है, वह पुरुष पुरानी केंचुलको छोड़नेवाले साँपकी भाँति पाप - कञ्चुकको त्यागकर दिव्य विमानपर आरुढ हो, विष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है ॥२ - १०॥
महाराज ! जो देवेश्वर भगवानको भक्तिपूर्वक मन्त्रपाठ करते हुए पञ्चगव्यसे स्नान कराता है, उसका पुण्य अक्षय होता है । जो गेहूँके आटेसे देवदेवेश्वर भगवानको उबटन लगाकर गरम जलसे उन्हें नहलता है, वह वरुणालोकको प्राप्त होता है । जो भगवानके पादपीठ ( पैर रखनेके पीढ़े, चौकी या चरणपादुका ) - को भक्तिपूर्वक बिल्वपत्रसे रगड़कर गरम जलसे धोता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है । कुश और पुष्पमिश्रित जलसे भगवानको स्नान कराकर मनुष्य ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है, रत्नयुक्त जलसे स्नान करानेपर सूर्यलोकको और सुवर्णयुक्त जलसे नहलानेपर कुबेरलोकको प्राप्त करता है । जो कपूर और अगुरुमिश्रित जलसे भगवान् नृसिंहको नहलाता है, वह पहले इन्द्रलोकमें सुखोपभोग करके फिर विष्णुधाममें निवास करता है । जो पुरुषश्रेष्ठ तीर्थोंके पवित्र जलसे गोविन्दको भक्तिपूर्वक स्नान कराता है, वह आदित्यलोकको प्राप्त करके पुनः विष्णुलोकमें पूजित होता है । जो भक्तिपूर्वक भगवानको युगल वस्त्र पहनाकर उनकी पूजा करता है, वह चन्द्रलोकमें सुखभोग करके पुनः विष्णुधाममें सम्मानित होता है ॥११ - १६१/२॥
राजेन्द्र ! जो कुङ्कुम ( केसर ), अगुरु और चन्दनके अनुलेपनसे भगवानके विग्रहको भक्तिपूर्वक अनुलिप्त करता है, वह करोड़ों कल्पोंतक स्वर्गलोकमें निवास करता है । जो मनुष्य मल्लिका, मालती, जाती, केतकी, अशोक, चम्पा, पुंनाग, नागकेसर, बकुल ( मौलसिरी ), उत्पल जातिके कमल, तुलसी, कनेर, पलाश - इनसे तथा अन्य उत्तम पुष्पोंसे भगवानकी पूजा करता है, वह प्रत्येक पुष्पके बदले दस सुवर्ण मुद्रा दान करनेका फल प्राप्त करता है । जो यथाप्राप्त उपर्युक्त पुष्पोंकी माला बनाकर उससे भगवान् विष्णुकी पूजा करता है, वह सैंकड़ों और हजारों करोड़ कल्पोंतक दिव्य विमानपर आरुढ हो विष्णुलोकमे आनन्दित होता है । जो छिद्ररहित अखण्डित बिल्वपत्रों और तुलसीदलोंमें भक्तिपुर्वक श्रीनृसिंहका पूजना करता है, वह सब पापोंसे सर्वथा मुक्त हो, सब प्रकारके भूषणोंसे भूषित होकर सोनेक मुक्त हो, सब प्रकारके भूषणोंसे भूषित होकर सोनेके विमानपर आरुढ हो विष्णुलोकमें सम्मान पाता है ॥१७ - २३१/२॥
राजेन्द्र ! जो माहिषु गुग्गुल, घी और शक्करसे तैयार की हुई धूपको भगवान् नरसिंहके लिये भक्तिपूर्वक अर्पित करता है, वह सब दिशाओंमे धूप करनेसे सब पापोंसे रहित हो अप्सराओंसे पूर्ण विमानद्वारा वायुलोकमें विराजमान होता है और वहाँ आनन्दोपभोगके पश्चात् पुनः विष्णुधाममें जाता है । जो मनुष्य विधिपूर्वक भक्तिके साथ घी अथवा तेलसे भगवान् विष्णुके लिये दीप प्रज्वलित करता है, उस पुण्यका फल सुनिये । वह पाप - पङ्कसे मुक्त होकर हजारों सुर्यके समान कान्ति धारणकर ज्योतिर्मय विमानसे विष्णुलोकको जाता है । जो विद्वान हविष्य, घी - शक्करसे युक्त अगहनीका चावल, जौकी लपसी और खीर भगवान् नरसिंहको निवेदन करता है, वह वैष्णव चावलोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक विष्णुलोकमें महान् भोगोंका उपभोग करता है । भगवान् विष्णुसम्बन्धी बलिसे सम्पूर्ण देवता तृप्त होकर पूजा करनेवालेको शान्ति, लक्ष्मी तथा आरोग्य प्रदान करते हैं ॥२४ - ३१॥
राजकुमार ! भक्तिपूर्वक देवदेव विष्णुकी एक बार प्रदक्षिणा करनेसे मनुष्योंको जो फल मिलता है, उसे सुनिये । वह सारी पृथ्वीकी परिक्रमा करनेका फल प्राप्त करके वैकुण्ठधाममें निवास करता है । जिसने कभी भक्तिभावसे भगवान् लक्ष्मीपतिको नमस्कार किया है, उसने अनायास ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरुप फल प्राप्त कर लिया । जो स्तोत्र और जपके द्वारा मधुसूदनकी उनके समक्ष होकर स्तुति करता है, वह समस्त पापोंसे मुक्त होकर विष्णुलोकमें पूजित होता है । जो भगवानके मन्दिरमें शङ्ख, तुरही आदि बाजोंके शब्दसे युक्त गानाबजाना और नाटक करता है, वह मनुष्य विष्णुधामको प्राप्त होता है । विशेषतः पर्वके समय उक्त उत्सव करनेसे मनुष्य कामरुप होकर सम्पूर्ण कामनाओंको प्राप्त होता है और सुन्दर संगीत जाननेवाली अप्सराओंसे शोभायमान बहुमूल्य मणियोंसे जड़े हुए देदीप्यमान विमानके द्वारा एक स्वर्गसे दूसरे स्वर्गकी प्राप्त होकर विष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है । जो भगवान् विष्णुके लिये गरुडचिह्नसे युक्त ध्वजा अर्पण करता है, वह भी ध्वजामण्डित जगमगाते हुए विमानपर आरुढ़ हो, अप्सराओंसे सेवित होकर विष्णुलोकको प्राप्त होता है ॥३२ - ३९॥
नरेश्वर ! जो सुवर्णके बने हुए दिव्य हार, केयूर, कुण्डल और मुकुट आदि आभरणोंसे भगवान् विष्णुकी पूजा करता है, वह बुद्धिमान सब पापोंसे मुक्त और सब आभूषणोंसे भुषित होकर जबतक चौदह इन्द्र राज्य करते हैं, तबतक ( अर्थात् पूरे एक कल्पतक ) इन्द्रलोकमें निवास करता है । जो विष्णुकी आराधना करके उनके लिये दुधार कपिला गौ दान करता है और उन भगवान् नृसिंहके समक्ष उसका उत्तम दूध थोड़ा - सा भी अर्पण करता है, वह विष्णुलोकमें सम्मानित होता है तथा राजन् ! उसके पितर चिरकालतक श्वेतद्वीपमें आनन्द भोगते हैं । भूपाल ! इस प्रकार जो नरश्रेष्ठ नरसिंहस्वरुप भगवान् विष्णुका पूजन करता है, उसे स्वर्ग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं, इसमें संशय नहीं हैं ॥४० - ४४॥
नृप ! जहाँ मनुष्योंद्वारा इस प्रकार भगवान् नरसिंहका पूजन होता है, वहाँ रोग, अकाल और राजा तथा चोर आदिका भय नहीं होता । इस विधिसे लक्ष्मीपति नरसिंहकी आराधना करके मनुष्य नाना प्रकारके स्वर्ग - मुख भोगता है और पुनः उसे [ संसारमें जन्म लेकर ] माताका दूध नहीं पीना पड़ता [ वह मुक्त हो जाता है ] । जिस गाँवमें [ भगवानके मन्दिरके निकट ] प्रतिदिन घी और तिलसे होम होता है, उस गाँवमे अनावृष्टि, महामारी आदि दोष तथा अग्निदाह आदि किसी प्रकारका भय नहीं होता । जिस गाँवमें गाँवका मालिक वेदवेत्ता ब्राह्मणोंद्वारा नरसिंहकी आराधना कराकर एक लक्ष होम कराता है, वहाँ मेरे कथनानुसार यह कार्य सम्पन्न होनेपर महामारी आदि प्रत्यक्ष उपद्रवसे कर्ताका तथा उस गाँवमें रहनेवाली प्रजाका अकालमरण नहीं होता । इसलिये भगवान् नरसिंहके मन्दिरमें भली प्रकारसे आराधना करनी चाहिये ॥४५ - ५०॥
नरेश ! इसी प्रकार शङ्करजीके मन्दिरमें भी संयमशील ब्राह्मणोंके द्वारा उन्हें भोजन और दक्षिणा देकर एक करोड़की संख्यामें हवन कराना चाहिये । नृपश्रेष्ठ ! उसके करनेपर भगवान् नरसिंहके प्रसादसे प्रजावर्गका आकस्मिक उपद्रव तथा मृत्युभय शान्त हो जाता है । घोर दुःस्वप्न देखनेपर और अपने ऊपर ग्रहजन्य कष्ट आनेपर होम और ब्राह्मणभोजन करान से उसका दोष मिट जाता है । दक्षिणायन या उत्तरायण आरम्भ होनेपर, विषुवकालमें, अथवा चन्द्रमा तथा सूर्यका ग्रहण होनेपर भगवान् नरसिंहकी आराधना करके लक्षहोम कराना चाहिये । राजेन्द्र ! यों करनेसे उस स्थानके निवासियोंके विघ्नकी शान्ति हो जाती है । नरेश्वर ! भगवान् नरसिंहकी पूजाके ऐसे अनेकों फल हैं । भूपालनन्दन ! यदि तुम सद्गति चाहते हो तो नृसिंहका पूजन करो । इससे बढ़कर कोई भी कार्य ऐसा नहीं है, जो स्वर्ग और मोक्षरुप फल देनेवाला हो । देवदेव नृसिंहका पूजन राजाओंके लिये तो बहुत ही सुकर है । परंतु जो अरण्यमें रहते हैं, उन्हें भी भगवानकी पूजाके लिये वृक्षोंके पत्र - पुष्प बिना मूल्य प्राप्त हो सकते हैं । जल नदी और तडाग आदिमें सुलभ है ही और भगवान् नृसिंह भी सबके लिये समान हैं; केवल उन उपासनाके साधनभूत कर्ममें मनकी एकाग्रता चाहिये । जिसने मनका नियमन कर लिया है, मुक्ति उसके हाथमें ही है ॥५१ - ५९॥
मार्कण्डेयजी बोले - इस प्रकार भृगुजीकी आज्ञासे मैंने तुमसे यहाँ भगवान् विष्णुके पूजनका वर्णन किया है । तुम प्रतिदिन भगवान् विष्णुके पूजनका वर्णन किया है । तुम प्रतिदिन भगवान् विष्णुका पूजन करो और बोलो, अब मैं तुम्हें और क्या बताऊँ ? ॥६०॥
इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराणके अन्तर्गत सहस्त्रानीक - चरित्रके प्रसङ्गमें ' श्रीविष्णुके पूजनकी विधि ' नामक चौतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥३४॥