सूतजी बोले - महामुने भरद्वाज ! अब चन्द्रवंशका वर्णन सुनो । ( अन्य ) पुराणोंमें इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, अतः इस समय मैं यहाँ संक्षेपसे इसका वर्णन करता हूँ ॥१॥
सर्वप्रथम ब्रह्माजी हुए, उनके मानसपुत्र मरीचि हुए, मरीचिसे दाक्षायणीके गर्भसे कश्यपजी उत्पन्न हुए । कश्यपसे अदितिके गर्भसे सूर्यका जन्म हुआ । सूर्यसे सुवर्चला ( संज्ञा ) - के गर्भसे मनुकी उत्पत्ति हुई । मनुके द्वारा सुरुपाके गर्भसे सोम और सोमके द्वारा रोहिणीके गर्भसे बुधका जन्म हुआ तथा बुधके द्वारा इलाके गर्भसे राजा पुरुरवा उत्पन्न हुए । पुरुरवासे आयुका जन्म हुआ, आयुद्वारा रुपवतीके गर्भसे नहुष हुए । नहुषके द्वारा पितृवतीके गर्भसे ययाति हुए और ययातिसे शर्मिष्ठाके गर्भसे पूरुका जन्म हुआ । पूरुके द्वारा वंशदाके गर्भसे सम्पाति और उससे भानुदत्ताके गर्भसे सार्वभौम हुआ । सार्वभौमसे वैदेहीके गर्भसे भोजका जन्म हुआ । भोजके लिङ्गाके गर्भसे दुष्यन्त और दुष्यन्तके शकुन्तलासे भरत हुआ । भरतके नन्दासे अजमीढ नामक पुत्र हुआ, अजमीढके सुदेवीके गर्भसे पृश्नि हुआ तथा पृश्निके उग्रसेनाके गर्भसे प्रसरका आविर्भाव हुआ । प्रसरके बहुरुपाके गर्भसे शंतनु हुए, शंतनुसे योजनगन्धाने विचित्रवीर्यको जन्म दिया । विचित्रवीर्यके अम्बिकाके गर्भसे पाण्डुका जन्म हुआ । पाण्डुसे कुन्तीदेवीके गर्भसे अर्जुन हुआ, अर्जुनसे सुभद्राने अभिमन्युसे उत्तराके गर्भसे परीक्षित् हुआ, परीक्षितके मातृवतीसे जनमेजय उत्पन्न हुआ और जनमेजयके पुण्यवतीके गर्भसे शतानीककी उत्पत्ति हुई । शतानीकके पुष्पवतीसे सहस्त्रानीक हुआ, सहस्त्रानीकसे मृगवतीसे उदयन उत्पन्न हुआ और उदयनके वासवदत्ताके गर्भसे नरवाहन हुआ । नरवाहनके अश्वमेधासे क्षेमक हुआ । यह क्षेमक ही पाण्डववंशका अन्तिम राजा है, इसके बाद सोमवंश निवृत्त हो जाता है ॥२ - १३॥
जो पुरुष इस उत्तम राजवंशका सदा श्रवण करता है, वह सब पापोंसे मुक्त एवं विशुद्धचित्त होकर विष्णुलोकको प्राप्त होता है । जो इस पवित्र वंश - वर्णनको प्रतिदिन स्वयं पढ़ता अथवा श्राद्धकालमें पितृगणोंको सुनाता है उसके पितरोंको दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है । द्विज ! यह मैंने आपसे सोमवंशी राजाओंका पाप - नाशक वंशानुकीर्तन सुनाया । विप्रवर ! अब मेरे द्वारा बताये जानेवाले चौदह मन्वन्तरोंको सुनिये ॥१४ - १६॥
इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराणमें ' सोमवंशका वर्णन ' नामक बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥२२॥