सूतजी बोले - अब संक्षेपसे चन्द्रवंशी राजाओंके चरित्रका वर्णन किया जाता है । कल्पके आदिकी बात है । ऋक, यजुष, साम और अथर्ववेदस्वरुप भगवान् नारायण समस्त त्रिभुवनको अपने उदरमें लीन करके एकार्णवकी अगाध जलराशिमें शेषनागकी शय्यापर योगनिद्राका आश्रय ले सो रहे थे । सोये हुए उन भगवानकी नाभिसे एक महान् कमल प्रकट हुआ । उस कमलमें चतुर्मुख ब्रह्माका आविर्भाव हुआ । उन ब्रह्माजीके मानसपुत्र अत्रि हुए । अत्रिसे अनसूयाके गर्भसे चन्द्रमाका जन्म हुआ । उन्होंने दक्ष प्रजापतिकी रोहिणी आदि तैंतीस कन्याओंको पत्नी बनानेके लिये ग्रहण किया और ज्येष्ठ भार्या रोहिणीसे उसके प्रति अधिक प्रसन्न रहनेके कारण, ' बुध ' नामक पुत्र उत्पन्न किया । बुध भी समस्त शास्त्रोंके ज्ञाता होकर प्रतिष्ठानपुरमें निवास करने लगे । उन्होंने इलाके गर्भसे पुरुरवा नामक पुत्रको जन्म दिया । पुरुरवा बहुत ही सुन्दर थे, अतः उर्वशी नामक अप्सरा बहुत कालतक स्वर्गके भोगोंको त्यागकर इनकी भार्या बनी रही । पुरुरवाद्वारा उर्वशीके गर्भसे आयु नामक पुत्रका जन्म हुआ । वह धर्मपूर्वक राज्य करके अन्तमें स्वर्गलोकको चला गया । आयुके रुपवतीसे नहुष नामक पुत्र हुआ, जिसने इन्द्रत्व प्राप्त किया था । नहुषके भी पितृमतीके गर्भसे ययाति हुए, जिनके वंशज वृष्णि कहलाते हैं । ययातिके शर्मिष्ठाके गर्भसे पूरु हुए । पूरुके वंशदासे संयाति नामक पुत्र हुआ, जिसको इस पृथ्वीपर सभी तरहके मनोवाञ्छित भोग प्राप्त थे ॥१ - ९॥
संयातिसे भानुदत्ताके गर्भसे सार्वभौम नामक पुत्र हुआ । उसने सम्पूर्ण पृथ्वीका धर्मपूर्वक पालन करते हुए यज्ञ - दान आदिके द्वारा भगवान् नृसिंहकी आराधना करके सिद्धि ( मुक्ति ) प्राप्त कर ली । उपर्युक्त सार्वभौमसे वैदेहीके गर्भसे भोज उत्पन्न हुआ , जिसके वंशमें कालनेमि नामक राक्षस, जो पहले देवासुर - संग्राममें भगवान विष्णुके चक्रसे मारा गया था, कंसके रुपमें उत्पन्न हुआ और वृष्णिवंशी वसुदेवनन्दन भगवान् श्रीकृष्णके हाथसे मारा जाकर मृत्युको प्राप्त हुआ ॥१० - ११॥
भोजकी पत्नी कलिङ्गासे दुष्यन्तका जन्म हुआ । वह भगवान् नृसिंहकी आराधना करके उनकी प्रसन्नतासे धर्मपूर्वक निष्कण्टक राज्य भोगकर जीवनके अन्तमें स्वर्गको प्राप्त हुआ । दुश्यन्तको शकुन्तलाके गर्भसे भरत नामक पुत्र प्राप्त हुआ । वह धर्मपूर्वक राज्य करता हुआ प्रचुर दक्षिणवाले यज्ञोंसे सर्वदेवमय भगवान् विष्णुकी आराधना करके कर्माधिकारसे निवृत्त एवं ब्रह्मध्यानपरायण हो परम ज्योतिर्मय वैष्णवधाममें लीन हो गया ॥१२॥
भरतके उसकी पत्नी आनन्दाके गर्भसे अजमीढ नामक पुत्र हुआ । वह परम वैष्णव था । राजा अजमीढ भगवान् नृसिंहकी आराधनासे पुत्रवान् होकर धर्मपूर्वक राज्य करनेके पश्चात् श्रीविष्णुधामको प्राप्त हुए । अजमीढके सुदेवीके गर्भसे वृष्णि नामक पुत्र हुआ । वह भी बहुत वर्षोंतक धर्मपूर्वक राज्य करता रहा । दुष्टोंका दमन और सज्जनोंका पालन करते हुए उसने सातों द्वीपोंसे युक्त पृथ्वीको अपने वशमें कर लिया था । वृष्णिके उग्रसेनाके गर्भसे प्रत्यञ्च नामक पुत्र हुआ । वह भी धर्मपूर्वक पृथ्वीका पालन करता था । उसने प्रतिवर्ष ज्योतिष्टोमयागका अनुष्ठान करते हुए आयुका अन्त होनेपर निर्वाणपद ( मोक्ष ) प्राप्त कर लिया । प्रत्यञ्चको बहुरुपाके गर्भसे शांतनु नामक पुत्र प्राप्त हुआ, जिनमें देवताओंके दिये हुए रथपर चढ़नेकी पहले शक्ति नहीं थीं, परंतु पीछे उसपर चढ़नेकी शक्ति हो गयी ॥१३ - १६॥
इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराणमें ' सोमवंशवर्णन ' नामक सत्ताईसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥२७॥