भरद्वाजजी बोले - सूतजी ! अब मैं आपसे भगवान् विष्णुके गुप्त तीर्थोका और उन तीर्थोंसे सम्बन्ध रखनेवाले भगवानके गुप्त नामोंका वर्णन सुनना चाहता हूँ; कृपया आप उन पापनाशक नामोंका मेरे समक्ष वर्णन कीजिये ॥१॥
सूतजी बोले - एक समय मन्दराचलपर विराजमान शंख - चक्र - गदाधारी देवदेव भगवान् विष्णुसे श्रीब्रह्माजीने पूछा ॥२॥
ब्रह्माजी बोले - सुरश्रेष्ठ ! हरे ! मुझे तथा मुक्ति चाहनेवाले अन्यान्य भक्तोंको किन - किन क्षेत्रोंमें जाकर आपका विशेषरुपस्से दर्शन करना चाहिये । जगत्पते ! कमललोचन ! आपके जो - जो गुप्त तीर्थ और नाम हैं, उन्हें मैं आपके ही मुखसे सुनना चाहता हूँ । सुरेश्वर ! मनुष्य आलस्य त्यागकर प्रतिदिन किसका जप करनेसे सद्गतिको प्राप्त हो सकता है ? अपने भक्तोंका हित - साधन करनेके लिये यह बात आप हमें बताइये ॥३ - ५॥
श्रीभगवान् बोले - ब्रह्मन् ! तुम सावधान होकर सुनो; मेरे जो गुह्य नाम और क्षेत्र हैं, उन्हें मैं ठीकठीक बता रहा हूँ ॥६॥
कोकामुख - क्षेत्रमें मेरे वाराहस्वरुपका, मन्दराचलपर मधुसूदनका, कपिलद्वीपमें अनन्तका, प्रभासक्षेत्रमें सूर्यनन्दनका, माल्योदपानतीर्थमें भगवान् वैकुण्ठका, महेन्द्रपर्वतपर राजकुमारका, ऋषभतीर्थमें महाविष्णुका, द्वारकामें भूपाल श्रीकृष्णका, पाण्डुसह्य पर्वतपर देवेशका, वसुरुढतीर्थमें जगत्पतिका, वल्लीवटमें महायोगका, चित्रकूटमें राजा रामका, नैमिषारण्यमें पीताम्बरका, गौओंके विचरनेके स्थान व्रजमें हरिका, शालग्रामतीर्थमें तपोवासका, गन्धमादन पर्वतपर अचिन्त्य परमेश्वरका, कुब्जागारमें हषीकेशका, गन्धद्वारमें पयोधरका, सकलतीर्थमें गरुडध्वजका, सायकमें गोविन्दका, वृन्दावनमें गोपालका, वाराणसी ( काशी ) - में केशवका, पुष्करतीर्थमें पुष्कराक्षका, धृष्टद्युम्न - क्षेत्रमें जयध्वजका, तृणबिन्दु वनमें वीरका, सिन्धुसागरमें अशोकका, कसेरटमें महाबाहुका, तैजस वनमें भगवान् अमृतका, विश्वासयूप ( या विशाखयूप ) - क्षेत्रमें विश्वेशका, महावनमें नरसिंहका, हलाङ्गरमें रिपुहरका, देवशालामें भगवान् त्रिविक्रमका, दशपुरमें पुरुषोत्तमका , कुब्जकतीर्थमें वामनका, वितस्तामें विद्याधरका, वाराह - तीर्थमें धरणीधरका, देवदारुवनमें गुह्यका, कावेरीतटपर नागशायीका, प्रयागमें योगमूर्तिका, पयोष्णीतटपर सुदर्शनका, कुमारतीर्थमें कौमारका, लोहितमें हयग्रीवका, उज्जयिनीमें त्रिविक्रमका, लिङ्गकूटपर चतुर्भुजका और भद्राके तटपर भगवान् हरिहरका दर्शन करके मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥७ - १८॥
इसी प्रकार कुरुक्षेत्रमें विश्वरुपका, मणिकुण्डमें हलायुधका, अयोध्यामें लोकनाथका, कुण्डिनपुरमें कुण्डिनेश्वरका, भाण्डारमें वासुदेवका, चक्रतीर्थमें सुदर्शनका, आढ्यतीर्थमें विष्णुपदका, शूकरक्षेत्रमें भगवान् शूकरका, मानसीर्थमें ब्रह्मेशका, दण्डकतीर्थमें श्यामलका, त्रिकूटपर्वतपर नागमोक्षका, मेरुके शिखरपर भास्करका, पुष्पभद्राके तटपर विरजका, केरलतीर्थमें बालरुप भगवानका, विपाशाके तटपर भगवान् यशस्करका, माहिष्मतीपुरीमें हुताशनका, क्षीरसागरमें भगवान् पद्मनाभका, विमलतीर्थमें सनातनका, शिवनदीके तटपर भगवान् शिवका, गयामें गदाधरका और सर्वत्र ही परमात्माका जो दर्शन करता है, वह मुक्त हो जाता है ॥१९ - २३ १/२॥
ब्रह्माजी ! ये अडसठ नाम हमने तुम्हें बताये तथा विशेषतः गुप्त तीर्थोंका भी वर्णन किया । प्रजापते ! जो पुरुष प्रतिदिन प्रातः काल उठकर मेरे इन गुह्यनामोंका पाठ या श्रवण करेगा, वह नित्य एक लाख गोदानका फल पायेगा । नित्यप्रति पवित्र होकर जो इन नामोंका पाठ करता है, उसको मेरी कृपासे कभी दुःस्वप्नका दर्शन नहीं होता, इसमें संदेह नहीं है । जो पुरुष इन अड़सठ नामोंका प्रतिदिन तीनों काल, अर्थात् प्रात; मध्याह्न और सायंकालमें पाठ करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर मेरे लोकमें पाठ करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर मेरे लोकमें आनन्द भोगता है । सभी मनुष्यों और विशेषतः वैष्णवोंकी चाहिये कि यथाशक्ति पूर्वोक्त तीर्थोंका दर्शन करें । जो लोग ऐसा करते हैं, उन्हें मैं मुक्ति देता हूँ ॥२४ - २९॥
सूतजी कहते हैं - जो पुरुष सदा और विशेषतः हरिवासर ( एकादशी या द्वादशीको ) भगवान् विष्णुकी पूजा करके उनके सामने खड़ा हो भगवत्समरणपूर्वक इस स्तोत्रका पाठ करता है, वह विष्णुके अमृतपादको प्राप्त कर लेता है ॥३०॥
इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराणमें ' आदि धर्मार्थमोक्षदायक विष्णुवल्लभस्तोत्र ' विषयक पैंसठवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥६५॥