श्रीभरद्वाजजी बोले - महामते ! अब मुझसे ' रुद्रसर्ग ' का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये तथा यह भी बताइये कि मरीचि आदि ऋषियोंने पहले किस प्रकार सृष्टि की ? महाबुद्धिमान् सूत ! वसिष्ठजी तो पहले ब्रह्माजीके मनसे उत्पन्न हुए थे; फिर वे मित्रवारुणके पुत्र कैंसे हो गये ? ॥१ - २॥
सूतजी बोले - साधुशिरोमणे ! आपके प्रश्नानुसार मैं अब रुद्र - सृष्टिका तथा उसमें होनेवाले सर्गोका वर्णन करुँगा, साथ ही मुनियोंद्वारा सम्पादित प्रतिसर्ग ( अनुसर्ग ) - को भी मैं विस्तारके साथ बताऊँगा; आपलोग ध्यानसे सुनें । कल्पके आदिमें प्रभु ब्रह्माजी अपने ही समान शक्तिशाली पुत्र होनेका चिन्तन कर रहे थे । उस समय उनकी गोदमें एक नीललोहित वर्णका बालक प्रकट हुआ । उसका आधा शरीर स्त्रीका और आधा पुरुषका था । वह प्रचण्ड एवं विशालकाय था और अपने तेजसे दिशाओं तथा अवान्तर दिशाओंको प्रकाशित कर रहा था । उसे तेजसे देदीप्यमान देख प्रजापतिने कहा - ' महामते ! इस समय मेरे कहनेसे तुम अपने शरीरके दो भाग कर लो । ' विप्र ! ब्रह्माजीके ऐसा कहनेपर प्रतापी रुद्रने अपने स्त्रीरुप और पुरुषरुपको उन्होंनें ग्यारह स्वरुपोंमें विभक्त किया; मैं उन सबके नाम बतलाता हूँ, सुनें । अजैकपात, अहिर्बुन्ध, कपाली, हर, बहुरुप, त्र्यम्बक, अपाराजित, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी और रैवत - ये ' ग्यारह रुद्र ' कहे गये हैं, जो तीनोम भुवनेकि स्वामी हैं । पुरुषकी भाँति स्त्रीरुपके भी रुद्रने ग्यारह विभाग किये । भगवती उमा ही अनेक रुप धारण कर इन सबकी पत्नी हैं ॥३ - ११॥
विप्रेन्द ! पूर्वकालमें प्रतापी रुद्रदेव जलमें घोर तपस्या करके जब चाहर निकले, तब अपेने तपोबलसे उन्होंने वहाँ नाना प्रकारके भूतोंकी सृष्टि की । सिंह, ऊँट और मगरके समान मुँहवाले पिशाचों, राक्षसों तथा वेताल आदि अन्य सहस्त्रों भूतोंको उत्पन्न किया । साढ़े तीस करोड उग्र स्वभाववाले विनायकगणोंकी सृष्टि की तथा दूसरे कार्यके उद्देश्यसे स्कन्दकरो किया । इस प्रकार भगवान् रुद्र तत्था उनके सर्गका मैंने पसे वर्णन किया ॥१२ - १५॥
अब मरीचि आदि ऋषियोंके अनुसर्गका वर्णन करता हूँ, आप सुनें । स्वयम्भू ब्रह्माजीने देवताओंसे लेकर स्थावरोंतक सारी प्रजाओंकी सृष्टि की । किंतु इन बुद्धिमान् ब्रह्माजीकी ये सब प्रजाएँ जब वृद्धिको प्राप्त नहीं हुईं, तब इन्होंने अपने ही समान मानस - पुत्रोंकी सृष्टि की । मरीचि अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वसिष्ठ और महाबुद्धिमान् भृगुको उत्पन्न किया । ये लोग पुराणमें नौ ब्रह्मा निश्चित किये गये हैं । ब्रह्मन् ! अग्नि और पितर भी ब्रह्माके ही मानस - पुत्र हैं । इन दोनों महाभागोंको सृष्टिकालमें स्वयम्भू ब्रह्मजीने उत्पन्न किया । फिर उन्होंने ' शतरुपा ' नामक कन्याकी सृष्टि करके उसे मनुको दे दिया ॥१६ - २०॥
उन स्वायम्भुव मनुसे देवी शतरुपाने ' प्रियव्रत ' और ' उत्तानपाद ' नामक दो पुत्र उत्पन्न किये और ' प्रसूति ' नामवाली एक कन्याको जन्म दिया । स्वायम्भुव मनुने अपनी कन्या प्रसूति दक्षको ब्याह दी । दक्षने प्रसूतिसे चौबीस कन्याएँ उत्पन्न कीं । अब मुझसे उन कन्याओंके नाम सुनें - श्रद्धा, लक्ष्मी, धृति, तुष्टि, पुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शान्ति, सिद्धि और तेरहवीं कीर्ति थी । भगवान् धर्मने संतानोत्पत्तिके लिये इन ते ह कन्याओंका पाणिग्रहण किया । धर्मकी इन श्रद्धा आदि पत्नियोंके गर्भसे काम आदि पुत्र उत्पन्न हुए । अपने पुत्र और पौत्र आदिसे धर्मका वंश खूब बढ़ा ॥२१ - २५॥
द्विजश्रेष्ठ ! श्रद्धा आदिसे छोटी अवस्थावाली जो उनकी शेष बहनें थीं, उनके नाम बता रहा हूँ - सम्भूति, अनसूया, स्मृति, प्रीति, क्षमा, संनति, सत्या, ऊर्जा, ख्याति, दसवीं स्वाहा और ग्यारहवीं स्वधा है । दक्षके ' मातरिश्चा ' और ' सत्यवान् ' नामक दो महाभाग पुत्र भी हुए । उपर्युक्त ग्यारह कन्याओंको दक्षने पुण्यात्मा ऋषियोंको दिया ॥२६ - २८॥
मरीचि आदि मुनियोंके जो पुत्र हुए, उन्हें मैं आपसे बतलाता हूँ । मरीचिकी पत्नी सम्भूति थी । उसने कश्यप मुनिको जन्म दिया । अङ्गिराकी भार्या स्मृति थी । उसने सिनीवाली, कुहू, राका और अनुमति - इन चार कन्याओंको उत्पन्न किया । इसी प्रकार अत्रि मुनिकी पत्नी अनसूयाने सोम, दुर्वासा और योगी दत्तात्रेय - इन तीन पापरहित पुत्रोंको जन्म दिया । द्विज ! ब्रह्माजीका ज्येष्ठ पुत्र, जो अग्निका अभिमानी देवता है, उससे उसकी पत्नी स्वाहाने पावक, पवमान और जलका भक्षण करनेवाले शुचिइन अत्यन्त तेजस्वी पुत्रोंको उत्पन्न किया । इन तीनोंके ( प्रत्येकके पंद्रह - पंद्रहके क्रमसे ) अन्य पैंतालीस अग्निस्वरुप संतानें हुईं । पिता अग्नि, उसके तीनों पुत्र तथा उनके भी ये पूर्वोक्त पैतालीस पुत्र सब मिलकर ' अग्नि ' ही कहलाते हैं । इस प्रकार उनचास अग्नि कहे गये हैं । ब्रह्माजीके द्वारा रचे गये जिन पितरोंका मैंने आपके समक्ष वर्णन किया था, उनसे उनकी पत्नी स्वधाने मेना और धारिणी - इन दो कन्याओंको जन्म दिया ॥२९ - ३५॥
साधुशिरोमणे ! पूर्वकालमें स्वयम्भू ब्रह्मजीके द्वारा ' तुम प्रजाकी सृष्टि करो ' यह आज्ञा पाकर दक्षने जिस प्रकार सम्पूर्ण भूतोंकी सृष्टि की थी, उसे सुनिये । विप्रवर ! दक्षमुनिने पहले देवता, ऋषि, गन्धर्व, असुर और सर्प - इन सभी भूतोंको मनसे ही उत्पन्न किया । परंतु जब मनसे उत्पन्न किये हुए ये देवादि सर्ग वृद्धिको प्राप्त नहीं हुए, तब उन दक्ष प्रजापति ऋषिने सृष्टिके लिये पूर्णतः विचार करके मैथुनधर्मके द्वारा ही नाना प्रकारकी सृष्टि रचनेकी इच्छा मनमें लिये वीरण प्रजापतिकी कन्या असिक्नीके साथ विवाह किया । हमने सुना है कि दक्ष प्रजापतिने वीरण - कन्या असिक्नीके गर्भसे साठ कन्याएँ उत्पन्न कीं । उनमेंसे दस कन्याएँ उन्होंने धर्मको और तेरह कश्यप मुनिको ब्याह दीं । फिर सत्ताईस कन्याएँ चन्द्रमाको, चार अरिष्टनेमिको, दो बहुपुत्रको, दो अङ्गिराको और दो कन्याएँ विद्वान् कृशाश्चको समर्पित कर दीं । अब इन सबकी संतानोंका वर्णन सुनिये ॥३६ - ४११/२॥
जो विश्वा नामकी कन्या थी, उसने विश्वेदेवोंको और साध्याने साध्योंको जन्म दिया । मरुत्वतीके मरुत्वान् ( वायु ), वसुके वसुगण, भानुके भानुदेवता और मुहूर्तके मुहूर्ताभिमानी देवगण हुए । लम्बासे घोष नामक पुत्र हुआ, जामिस्से नागवीथि नामवाली कन्या हुई और अरुन्धतीसे पृथिवीके समस्त प्राणी उत्पन्न हुए । महाबुद्धे ! संकल्पा नामक कन्यासे संकल्पका जन्म हुआ, अनेक प्रकारके वसु ( तेज अथवा धन ) ही जिनके प्राण हैं, ऐसे जो आठ ज्योतिर्मय वसु देवता कहे गये हैं, उनके नाम सुनिये - आप, ध्रुव, सोम, धर्म, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास - ये ' आठ वसु ' कहलाते हैं । इनके पुत्रों और पौत्रोंकी संख्या सैकड़ों और हजारोंतक पहुँच गयी हैं ॥४२ - ४७॥
इसी प्रकार साध्यगणोंकी भी संख्या बहुत है और उनके भी हजारों पुत्र हैं । जो ( दक्ष - कन्याएँ ) कश्यप मुनिकी पत्नियाँ हुए, उनके नाम सुनिये - वे अदिति, दिति, दनु, अरिष्टा, सुरसा, खसा, सुरभि, विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा, कद्रू और मुनि थीं । धर्मज्ञ ! अब आप मुझसे उनकी संतानोंका विवरण सुनिये । महामते ! अदितिके कश्यपजीसे बाराह सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुए । उनके नाम बता रहा हूँ, सुनिये - महामते ! भग, अंशु, अर्यमा, मित्र, वरुण, सविता, धाता, विवस्वान्, त्वष्टा, पूषा, इन्द्र और बारहवें विष्णु कहे जाते हैं । दितिके कश्यपजीसे दो पुत्र हुए थे, ऐसा हमने सुना है। पहला महाकाय हिरण्याक्ष हुआ, जिसे भगवान् वाराहने मारा और दूसरा हिरण्यकशिपु हुआ, जो नृसिंहजीके द्वारा मारा गया । इनके अतिरिक्त अन्य भी बहुत - से दैत्य दितिसे उत्पन्न हुए । दनुके पुत्र दानव हुए और अरिष्टाके कश्यपजीसे गन्धर्वगण उत्पन्न हुए । सुरसाचे अनेक विद्याधरगण हुए और सुरभिसे कश्यप मुनिने गौओंको जन्म दिया ॥४८ - ५५॥
विनताके ' गरुड ' और ' अरुण ' नामक दो विख्यात पुत्र हुए । गरुडजी प्रेमवश अमित - तेजस्वी देवदेव भगवान् विष्णुके वाहन हो गये और अरुण सूर्यके सारथि बने । ताम्राके कश्यपजीसे छः पुत्र हुए, उन्हें आप मुझसे सुनिये - घोड़ा, ऊँट, गदहा, हाथी, गवय और मृग । पृथ्वीपर जितने दुष्ट जीव है, वे क्रोधासे उत्पन्न हुए हैं । इराने वृक्ष, लता, वल्ली और ' सन ' जातिके तृणवर्गको जन्म दिया । खसाने यक्ष और राक्षसों तथा मुनिने अप्सराओंको प्रकट किया । कद्रूके पुत्र प्रचण्ड विषवाले ' दंदशूक ' नामक महासर्प हुए । विप्रवर ! चन्द्रमाकी सुन्दर व्रतवाली जिन सत्ताईस स्त्रियोंकी चर्चा की गयी हैं, उनसे बुध आदि महान् पराक्रमी पुत्र हुए । अरिष्टनेमिकी स्त्रियोंके गर्भसे सोलह संतानें हुई ॥५६ - ६१॥
विद्वान बहुपुत्रकी संतानें कपिला, अतिलोहिता, पीता और सिता - इन चार वर्णोवाली चार बिजलियाँ कही गयी हैं । प्रत्यङ्गिराके पुत्रगण ऋषियोंद्वारा सम्मानित उत्तम ऋषि हुए । देवर्षि कृशाश्चके पुत्र देवर्षि ही हुए । ये एक - एक हजार युग ( अर्थात् एक कल्प ) - के बीतनेपर पुनः - पुनः उत्पन्न होते रहते हैं । इस प्रकार कश्यपके वंशमें उत्पन्न हुए चर - अचर प्राणियोंका वर्णन किया गया । विप्रवर ! धर्मपूर्वक पालनकर्ममें लगे हुए भगवान् नरसिंहकी इन विभूतियोंका यहाँ मैंने आपके समक्ष वर्णन किया है । साथ ही दक्षकन्याओंकी वंश - परम्परा भी बतलायी है । जो श्रद्धापूर्वक इन सबका स्मरण करता है, वह सुन्दर संतानसे युक्त होता है । ब्रह्मन ! सृष्टि - विस्तारके लिये ब्रह्मा तथा अन्य प्रजापतियोंद्वारा जो सर्ग और अनुसर्ग सम्पादित हुए, उन सबको मैंने संक्षेपसे आपको बता दिया । जो द्विजाति मानव भगवान् विष्णुमें मन लगाकर इन प्रसङ्गोंको सदा पढेंगें वे निर्मल हो जायँगे ॥६२ - ६७॥
इस प्रकार श्रीनरसिंहपुराणमें पाँचवाँ अध्याय पुरा हुआ ॥५॥