गुरुबिन मारग नहीरे कबीरा गुरुबिन मारग नहीरे कबीरा ॥ध्रु०॥
एक दोन तीन कहते पकरत वेद पुराना ।
जो वेद पंथका भेद न जाना पानीमें डुब मुवारे बमना ॥ गुरु०॥१॥
कानमें कुंडल रुद्राक्ष गलेमें जंगम काहेकू होना ।
जो पंथका भेद न जाना लिंग पुजपुज मुवारे जंगमा ॥२॥
अव्वल काजी मसीद मुल्ला नहीं तो निमाज पढना ।
जो और पंथका भेद न जाना ध्यान धर धर मुवारे मुल्ला ॥३॥
कहत कबीरा सोय करे तुम अपने अपने धरम गुरुसे ।
पिछान करोरे बाबा ॥४॥