संगत संतनकी करले जनमका सार्थक कछु करले ॥ध्रु०॥
उत्तर नर देह पाया प्राणी इसका हित कछु करले ।
सद्गुरु शरण जाके बाबा जनम मरण दुर करले ॥ संगत॥१॥
कहांसे आया कहां जावेगा ये कछु मालूम करना ।
दो दिनकी जिंदगानी बंदे हुशार होकर चलना ॥२॥
कौन किसीके जोरूं लडके कौन किसीके साले ।
जबलग पल्लोमें पैसा भाई तबलग मिठ्ठा बोले ॥३॥
कहत कबीरा सुन भाई साधु बारबार नहीं आना ।
अपना हित कछु करले भाई अखर अकेला जाना ॥४॥