जमसे नहीं डरूंगाबे । हरीका भजन करूंगाबे ॥ध्रु०॥
अहंता मारूं ममता मारूं खानजाद मैं कहांऊ ।
मन मेरा चौकस राखूं चीत चैतन मैं मिलाऊं ॥१॥
रामनामका घोडा मेरा मैदानें दवडाऊं ।
भजन प्रताप हातमें बरची सन्मुख लेकर जाऊं ॥२॥
और लोक कसबोकें चाकर मैं हुजूरका काजी ।
काम क्रोधकी गर्दन मारूं साहेब राखूं राजी ॥३॥
मै साहेबका साचा चाकर मेरा नाम कबीरा ।
सब संतनकू शीस नमाऊ जोहरी पारखे हिरा ॥४॥