हरि तो नाम न लेत गवारा ।
काहे सोत बारोबार ॥हरि०॥ध्रु०॥
जद पार उतरना चाहीये । जद उतर भये पारा ।
फर इतहीक उत संसारा ॥१॥
जद दरसनको चित चाहीये । दरपन नत मांजत रहीये ।
तेरे दरपनमें लागी कायी । फेर दरसन कहांसे होयी ॥२॥
जद पान फूल चाहिये । बिराहा नित संचित रहिये ।
तेरा बिरहा गया कुमलई । पान फूल कहांसे पायी ॥३॥
बाजीगरने जो बाजा बजाया । सब खलक तमासेको आया ।
बाजीगरने जा डंका सहेला । फीर रहे गया आप अकेला ॥४॥
जो राम नाम गुन गावे । सो बैकुंठ बासा पावे ।
जिन्ने सद्गुरु पुरा पाया । उन्ने दिलका भरम गमाया ॥५॥
देखो देखो गरिब जनकी करनी । वांके अंतर बीच कतरनी ।
ओ करतनीकी गांठ न छुटे । बांके हुकम हुल समज लुटे ॥६॥