कर समरनके रंग होरी खेलीये ।
ध्यान पकडा गायनके रस भये ।
या बुध मनसे लढि ये ॥ध्रु०॥
सुरत निरंग और रंग रागिणी कौन चंगसे गाइये ।
पांचसखी मिल उठउठ गावे उनसे लोका चली चंग चाहिये ॥१॥
ताल पखबाज मुरदंग बासरी आनंद नाद बजाइये ।
काम क्रोध लोभ मोह मत्सर भरभर अबीर उडाइये ॥२॥
प्रेम प्रकाश अनन भये अंतर आवन गावन सुनाइये ।
कहत कबीर सुन भाई साधु सद्गुरुस बाबा गाइये ॥३॥