संतनके सब भाई हरजी ॥सं०॥ध्रु०॥
जाती बरन कुल जानत नहीं लोग करे चतुराई ॥१॥
शबरी जात भिल्लिनी होती बोर तोरके लाई ।
प्रीत जान वांका फल खात तीनऊ लोक बढाई ॥२॥
करमा कौन आचरन किनी हरिसो प्रीति लगाई ।
छप्पन भोगही आरोगे पहिले खिचरी खाई ॥३॥
नामा पिपा और रोहिदास उन्होसे प्रीति लगाई ।
सेनभक्तको संशय मेटो आप भयें हरी नाई ॥४॥
सहस्त्र अठासी ऋषी मुनी होत तबहुन संख बाजे ।
कहत कबीर सुपचके आये संख मगन होय गाजे ॥५॥