ऐसा कोई आदली आद्दल चलावे । नगरीमें चोर घुसने नहीं पावे ॥ध्रु०॥
पांच पचीस एक घर लावे । चित्त चबुतरे न्याय चिकावे ॥१॥
बीन तोफ तजी हां होत आवाजा । बिन समशेर पकर लियो राजा ॥२॥
सोहंके घर होत आनंदा । मिट गये तिमिर उदय भये चंदा ॥३॥
चेतनके घर पहेरा जागे । जुगल चोर कहांसे लागे ॥४॥
कहत कबीर सद्गुरु संग जागे । इस नगरिकूं डंख नहीं लागे ॥५॥