ग्यान कटारी मोहे कसकर मारी । सद्गुरु बलहारी ॥ध्रु०॥
ग्यानका बान हिरदे बिच लगा । सबदका मारा हो गया न्यारा ॥१॥
नहीं मोहे ढाल नहीं तरवारी । लग गई मोरे कलेजेमे करी ॥२॥
ये मन मस्तक ह्यां नहीं माने । वांको संदेह मैं वारी कहे कबीर सुन भई साधु ।
टूक टूक कर डारी ॥३॥