हरी नामके बेपारी हम हरी नामके बेपारी ।
अमुक हिरा हात लागा साची जबान हमारी ॥ध्रु०॥
तन करूं बेल सुरतकूं वेढा ज्ञानकी गोन भरदारी ।
किन्ने लादा तांबा कंचन किन्ने लादा सोपारी ॥१॥
साहेब नाम हृदय बसत मनकी माया सब टाली ।
आप निरंजन होकर बैठे मोये भरंवसा भारी ॥२॥
ना सिर जटा ना कान मुदरा ना गले कंठा भारी ।
तूं प्रतिपाल दोनो जुगतरे किती एक बात तेढी ॥३॥
उननें लादा माल धन उननें लादा सुंदर नारी ।
दास कबीरनें रामनाम लादा है भिनी खेप हमारी ॥४॥