कहे कबीरा सुना धर्मदासा । सब दबाये न कल हंसा ।
काल दगोये सनत्कुवार ताको शब्द कहो पुकार ।
जल बांधु जलायेन बांधु । देवी अंध कुमारी ।
धर्मसहित संन्यासी बांधु । कोट आंगसे घाट संहारू ।
चंद्रसूरज तारांगण बांधु । धरती गगन बांधू जमचारी ।
ताडपर छी छत्र बांधू । हनुमंत बांधु बिरबलधारी ।
यंत्रको कोतल बांधु । जाहां था ताहां हाडारी ।
डांकिणी शंखिनी नारी बांधु । कुलबलाये विष्णूकूं बांधु ।
उत्तरदिसाये विभीषणकूं बांधु । मेरी वाचा परे ।
अनंतकोट सिधकी वाचा टरे । सतसुकृतकी फीरे द्वाही ।
लुत भुत सबी गई पराई ॥