भवभंजन गुन गाऊं । रमते रामकूं रिझाऊं ॥ध्रु०॥
ग्यान कटारी कसकर बांधी सुरत कमान चढ़ाऊं ।
पाचोमार पचिसो बसकर काया नगर बसाऊं ॥१॥
पंचमुखी गंगामें न्हाऊं मान गुमान वाहूं ॥२॥
पंचतत्त्वका घट भीतरमों सो बिरहा लगाऊं ॥३॥
तन कर घोडा मन कर चाबुक मिलकर निल गाऊं ॥४॥
कामक्रोधकी गर्दन मारू तब मुजरेकुं जाऊं ॥५॥
आगे आगे उंट सलेदा पाछे नौबत बाजे ।
दास कबीरके लाल बंदुक जमका शीर पुरगा बाजे ॥६॥