गुरुजी आसरा तेरा । स्वामी आसरा तेरा ॥ध्रु०॥
जगत ये रेनको सुपनो । समज देखो कोई नहीं आपनो ।
लेये लोभकी धार । भय्या सब जात संसार ॥१॥
देवो जन भूल तन गोरा । जगतमें जिवना थोरा ।
तजो मद लोभ चतुराइ । रहो निरसंसे जुगमाही ॥२॥
पात ज्यूं डालसे छुटा । घटा जो नीरका फुटा ।
तैसे जन जान जिंदगानी आबहूं । क्यौं न चेतो अभिमानी ॥३॥
लडकपण खेलमें खोया । ज्वानीमें निदभर सोया ।
बुढाका देखकर रोया । भजनबिना जिंदगी खोया ॥४॥
ठगकूं भेद नहीं दिजो । इनकूं समजतां लिजो ।
बिदेसी देशकूं पावे । उनकूं भेद बतलावे ॥५॥
सजन परिवार सुत दारा । रहे उस राज सब न्यारा ।
निकाल जब प्रान जावेगे । नहीं कोई काम आवेगे ॥६॥
देखो जन भूल ये देहा । लगावो प्यारे रामके सनेहा ।
कटे ये कालका घेरा । कहे कबीर दास जन तेरा ॥७॥