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प्रह्राद

   
Script: Devanagari

प्रह्राद     

प्रह्राद n.  एक हरिभक्त असुर, इन्द्र, एवं धर्मज्ञ, जो हिरण्यकशिपु नामक असुर राजा का पुत्र था । पालिग्रंथों में इसका निर्देश ‘पहाराद’ नाम से किया गया है, एवं इसे ‘असुरेंद्र’ कहा गया है [अंगुत्तर. ४.१९७] । इसकी माता का नाम कयाधू था [म.आ.५९.१८] ;[भा.७.४] ;[विष्णु.१.१६] । इसका, इसकी माता कयाधू एवं पुत्र विरोचन का निर्देश तैत्तिरीय ब्राह्मण में प्राप्त है [तै. ब्रा.१.५.९] । यह निर्देश देवासुर संग्राम के उपलक्ष्य में किया गया है । कई विद्वानों के अनुसार, ईरान का पुण्यात्मा शासक ‘परधात’ अथवा ‘पेशदात’ और ये दोनों एक ही थे । ईरानी राजा ‘परधात’ का पूरा नाम ‘हाओश्यांग परधात’ था । हाओश्यांग का अर्थ होता है, ‘पुण्यात्माओं का राजा’। परधाता ने पूजा-पाठ से ईश्वर को प्रसन्न कर लिया था [मैथोलाजी ऑफ ऑल रेसेस-ईरान, पृ.२९९-३००]
प्रह्राद n.  पद्मपुराण के अनुसार, कयाधू के गोद में प्रह्राद ने दो बार जन्म लिया था । इसका पहला जन्म हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष दानवों का देवों से जब युद्ध शुरु था, उस समय हुआ था । उस जन्म में इसे विश्वरुपदर्शन भी हुआ था । पश्चात् श्रीविष्णुद्वारा इसका वध हुआ । इसके वध का समाचार सुन कर, इसकी माता रोने लगी । फिर नारद वहॉ आया एवं उसने कहा, ‘तुम शोक मत करो । यही प्रह्राद पुनः तुम्हारे गर्भ में जन्म लेगा, एवं उस जन्म में वह श्रीविष्णु का परमभक्त बनेगा । अपने पराक्रम एवं पुण्यकर्म के कारण, उसे इंद्रत्व प्राप्त होगा । यह मेरी भविष्यवाणी है, जिसे तुम गुप्त रखना’ । पद्मपुराण के इस कथा में प्रह्राद की माता का नाम कयाधू के बदले कमला दिया गया है [पद्म. भू.५.१६.३०] । नारद द्वारा कयाधू को दिया हुआ सारा उपदेश कयाधू के गर्भ में स्थित प्रह्राद से सुना । इसी कारण यह जन्मसे ही ज्ञानी पैदा हुआ ।
प्रह्राद n.  जन्म से यह परमविष्णुभक्त था । इसकी विष्णुभक्ति इसके असुर पिता हिरण्यकाशिपु को अच्छी नहीं लगती थी । इसे विष्णुभक्ति छोडने पर विवश करने के लिये, उसने इसे डराया, धमकाया तथा मरवाने का भी प्रयत्न किया । विष्णुपुराण के अनुसार, हिरण्यकशिपु ने इसका वध करने के लिये, इसे हाथी द्वारा कुचलने का प्रयत्न किया । यही नहीं, इसे सर्पद्वारा डसाने का, पर्वत से गिराने का, गढ्ढे में गाडने का, विष पिलाने का, वारुणीपाश से बॉंधने का, शस्त्रद्वारा मारने का, जलाने का, कृत्या छोडने का, माया छोडने का, संशोषक वायु छोडने का, तथा समुद्रतल में गाडने का आदि बहुत सारे प्रयत्न किये, किन्तु श्रीविष्णु की कृपासे, प्रह्राद अपने पिता द्वार रचे गये इन सारे षडयंत्रों से बच गया [विष्णु.१.१७] ;[भा.७.५] । अन्य पुराणों में हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्राद को दिये गये इन कष्टों का निर्देश अप्राप्य है (नृसिंह देखिये) । इतने कष्ट सहकर भी प्रह्राद ने विष्णुभक्ति का त्याग न किया । अंत में पिता के बुरे वर्ताव से तंग आ कर, इसने दीनभाव से श्रीविष्णु की प्रार्थना की । फिर, श्रीविष्णु नृसिंह का रुप धारण कर प्रकट हुए । नृसिंह ने इसके पिता का वध किया, एवं इसे वर मॉंगने के लिये कहा । किन्तु अत्यन्त विरक्त होने के कारण, इसने विष्णुभक्ति को छोड कर बाकी कुछ न मॉंगा [भा.७.६.१०] । इसके भगवद्भक्ति के कारण, नृसिंह इसपर अत्यंत प्रसन्न हुआ । हिरण्यकशिपु के वध के कारण, नृसिंह के मन में उत्पन्न क्रोध भी इसकी सत्वगुणसंपन्न मूर्ति देखने के उपरांत शमित हो गया । यह अत्यन्त पितृभक्त था । पिता द्वारा अत्यधिक कष्ट होने पर भी, इसकी पितृभक्ति-अटल रही, एवं इसने हर समय अपने पिता को विष्णुभक्ति का उपदेश दिया । पिता की मृत्यु के उपरांत भी, इसने नृसिंह से अपने पिता का उद्धार करने की प्रार्थना की । नृसिंह ने कहा, ‘तुम्हारी इक्कीस पीढियों का उद्धार हो चुका है’ । यह सुन कर इसे शान्ति मिली । पश्चात् हिरण्यकशिपु के वध के कारण दुःखित हुये सारे असुरों को इसने सांत्वना दी । पश्चात यह नृसिंहोपासक एवं महाभागवत बन गया [भा.६.३.२०] । यह ‘हरिवर्ष’ में रह कर नृसिंह की उपासना करने लगा [भा.५.१८.७] । विष्णुभक्ति के कारण प्रह्राद के मन में विवेकादि गुणोंका प्रादुर्भाव हुआ । विष्णु ने स्वयं इसे ज्ञानोपदेश दिया, जिस कारण यह सदविचारसंपन्न हो कर समाधिसुख में निमग्न हुआ । फिर श्रीविष्णु ने पांचजन्य शंख के निनाद से इसे जागृत किया, एवं इसे राज्याभिषेक किया । राज्याभिषेक के उपरान्त श्रीविष्णु ने इसे आशीर्वाद दिया, ‘षड्‌रिपुओं की पीडा से तुम सदा ही मुक्त रहोगे’ [यो.वा.५.३०-४२] । यह आशीर्वचन कह कर श्रीविष्णु स्वयं क्षीरसागर को चले गये ।
प्रह्राद n.  इंद्रपदप्राप्ति करनेवाला यह सर्वप्रथम दानव था । इसके पश्चात् आयुपुत्र रजि इंद्र हुआ, जिसने दानवों को पराजित कर के इंद्रपद प्राप्त किया ।
प्रह्राद n.  इसके पत्नी का नाम देवी था । उससे इसे विरोचन नामक पुत्र एवं रचना नामक कन्या हुई [भा.६.६,६. १८.१६] ;[म,आ.५९.१९] ;[विष्णु.१.२१.१]
प्रह्राद n.  विभिन्न व्यक्तिओं से प्रह्राद ने किये तत्वज्ञान एवं संवादों के निर्देश महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त हैं, जिनसे इसके ज्ञान, विवेकशीलता एवं तार्किकता पर काफी प्रकाश डाला जाता है । हंस (सुधन्वन्) नामक ऋषि से इसका ‘सत्यासत्य भाषण’ विषय पर संवाद हुआ था । हंस ऋषि का प्रह्रादपुत्र विरोचन से झगडा हुआ था, एवं उस कलह का निर्णय देने का काम प्रह्राद को करना था । इसने अपना पुत्र असत्य भाषण कर रहा है, यह जानकर उसके विरुद्ध निर्णय दिया, एवं सुधन्वन का पक्ष सत्य ठहराया । इस निर्णय दिया, एवं सुधन्वन् प्रसन्न हुआ एवं उसने विरोचन को जीवनदान दिया [म.उ.३५-३०-३१] ; विरोचन देखिये । इसका तथा इसके नाती बलि का लोकव्यवहार के संबंध में संवाद हुआ था । बलि ने इसे पुछा ‘हम क्षमाशील कब रहे, तथा कठोर कब बने? बलि के इस प्रश्न पर प्रह्राद ने अत्यंत मार्मिक विवेचन किया । बलि ने वामन की अवहेलना की । उस समय क्रुद्ध हो कर इसने बलि को शाप दिया, ‘तुम्हारा संपूर्ण राज्य नष्ट हो जायेगा ।’ पश्चात् वामन ने बलि को पाताललोक में जाकर रहने के लिये कहा । बलि ने अपने पितामह प्रह्राद को भी अपने साथ वहॉं रखा [वामन.३१] । एकबार प्रह्राद के ज्ञान की परीक्षा लेने के लिये, इन्द्र इसके पास ब्राह्मणवेश में शिष्यरुप में आया । उस समय प्रह्राद ने उसे शील का महत्व समझाया । उन बातों से इन्द्र अत्यधिक प्रभावित हुआ, एवं उसने इसे ब्रह्मज्ञान प्रदान किया [म.शां.२१५] । अजगर रुप से रहनेवाले एक मुनि से ज्ञानप्राप्ति की इच्छा से इसने कुछ प्रश्न पूछे । उस मुनि ने इसके प्रश्नों का शंकासमाधान किया, एवं इसे भी अजगरवृत्ति से रहने के लिये आग्रह किया [म.शां.१७२] । उशनस् ने भी इसे तत्त्वज्ञान के संबंध में दो गाथाएँ सुनाई थी [म.शां.१३७६६-६८]
प्रह्राद n.  पद्म के अनुसार, पूर्वजन्म में प्रह्राद सोमशर्मा नामक ब्राह्मण था, एवं इसके पिता का नाम शिवशर्मा था [पद्म.भू.५.१६] । पद्म में अन्यत्र उस ब्राह्मण का नाम वसुदेव दिया गया है, एवं उसने किये नृसिंह के व्रत के कारण, उसे अगले जन्म में राजकुमार प्रह्राद का जन्म प्राप्त हुआ, ऐसा कहा गया है [पद्म. उ.१७०]
प्रह्राद II. n.  कद्रूपुत्र एक सर्प, जिसने कश्यपऋषि को उच्चैःश्रवस् नामक घोडा प्रदान किया था [म.शां.२४.१५]
प्रह्राद III. n.  एक वाह्रीकवंशीय राजा, जो शूलभ नामक दैत्य के अंश से उत्पन्न हुआ था [म.आ.६१.२९]

प्रह्राद     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
प्र-ह्राद  m. m. (√ ह्राद्) N. of the chief of the असुरs (with the patr.कायाधव. and father of विरोचन), [TBr.]
ROOTS:
प्र ह्राद
प्र-ह्लाद   of a son of हिरण्यकशिपु (he was an enemy of इन्द्र and friend of विष्णु), [MBh.] ; [Hariv.] ; [BhP.] (cf.).
ROOTS:
प्र ह्लाद

प्रह्राद     

Shabda-Sagara | Sanskrit  English
प्रह्राद  m.  (-दः) A prince: see प्रह्लाद.
E. changed to र .
ROOTS:
र .

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