निवडक अभंग संग्रह २२
निवडक अभंग संग्रह २२
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भजो रे भैया राम गोविंद हरि ॥धृ॥
जप तप साधन कछु नहीं लागत । खरचत नहीं गठरी ॥१॥
संतति संपति सुखके कारन । ज्यासे भूल परी ॥२॥
कहत कबीर ज्यामुख राम नहीं वो मुख धूल परी ॥३॥
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गुरुबिन कौन बतावे बाट । बडा बिकट यम घाट ॥धृ॥
भ्रांतिकी बाडी नदिया बिचमों । अहंकारकी लाट ॥१॥
मदमत्सरकी धार बरसत है । माया पवन घनदाट ॥२॥
काम क्रोध दो पर्वत ठाडे । लोभ चोर संगात ॥३॥
कहत कबीर सुन मेरे गुनिया । क्यों करना बोभाट ॥४॥
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मैं गुलाम मैं गुलाम मैं गुलाम तेरा । तूही मेरा सच्चा सांई नाम लेउं तेरा ॥धृ॥
रंग नहीं रुप नहीं नहीं बरन छाया । निराकार निरगुन तूही रघुराया ॥१॥
एक रोटी दे लंगोटीं व्दार तेरा पावूं । काम क्रोध छोडकर हरिगुन गाऊं ॥२॥
मेहेरबान मेहेरबान मेहेर करो मेरी । दास कबीर चरण खडा नजर देख तेरी ॥३॥
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हरि बोलो भाई हरि बोलो भाई । हरि ना बोले वांकु राम दुर्हाई ॥१॥
काहेकु पढता खिन खिन गीता । हरिनाम लिया सो सब कुछ होता ॥२॥
मेरा मेरा कर कर क्या फ़ल पाया । हरिके भजन बिना झुठ गमाया ॥३॥
कहत कबीर हरिगुन गाना । गावत गाचत वैकुंठ जाना ॥४॥
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कान्हा बंसरी बजाय गिरिधारी । तोरि बन्सरी लागी मोको प्यारी ॥धृ॥
दही दुध बेचने जाती जमुना । कान्हाने घागरी फ़ोरी ॥१॥
सिरपर घट घटपर झारी । उसकु उतार मुरारी ॥२॥
सास बुरी रे ननंद हठेली । देवर देवे मोको गारी ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरण कमल बलिहारी ॥४॥
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हरि गुन गावत नाचुंगी ॥धृ॥
अपने मंदिरमों बैठ बैठकर । गींता भागवत बांचुगी ॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठडी बांधकर । हरिहर संग मै लागूंगी ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सदा प्रेमरस चाखुंगी ॥३॥
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झुलत राधा संग । गिरधर झुलत राधा संग ॥धृ॥
अबिर गुलालकी धूम मचाई । भर पिचकारी रंग ॥१॥
लालभाई बिंद्राबन जमुना । केशर चूवत रंग ॥२॥
नाचत ताल अधार सुरभर । धिमी धिमी बाजे मृदंग ॥३॥
मीरके प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमलकु दंग ॥४॥
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कृष्णा करो यजमान । प्रभु तुम कृष्ण करो यजमान ॥धृ॥
जाकी कीरत बेद बखानत । सांखी देत पुरान ॥१॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभत । कुंडल झलकत कान ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । दे दरशनको दान ॥३॥
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तुम बिन मेरी कौन खबर ले । गोवर्धन गिरिधारी ॥धृ॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । कुंडलकी छबी न्यारी ॥१॥
भरी सभामें द्रौपदी ठारी । राखो लाज हमारी ॥२॥
मीराके प्रभु गिरधर नागर । चरणकमल बलिहारी ॥३॥
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पग घुंगरु रे पग घूंगरु बांधकर नाची ॥धृ॥
मैं अपने तो नारायणकी । हो गयी आपही दासी ॥१॥
विषका प्याला राजाजीने भेजा । पीबत मीरा हासी ॥२॥
लोग कहे मीरा भई रे बावरी । बाप कहे कुल नासी ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधन नागर । हरिचरणकी दासी ॥४॥
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Last Updated : January 23, 2008
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