प्रासादोत्सर्ग
सर्व पूजा कशा कराव्यात यासंबंधी माहिती आणि तंत्र.
प्रासादोत्सर्ग :--- प्रासादवास्तु. प्रासाद अधिवासन पश्चात् पहले से रखे गये शांतिकलश जल से सपरिवार जयमान का अभिषेक हो । यजमान आचार्य, मूर्ति की रक्षा करनेवाले को, ब्राम्हाणों को और स्थपति को सम्मानित करें ।
संकल्प :--- (कुश, यव, जल, हाथ में रखें). शुभपुण्यतिथौ इमं शिलाइष्टका दार्वीदे निर्मितम वलभी जगती प्राकारपरिवार गोपुरपरिवार देवतालय संयुतं तत् तत् देवतालोक अवाप्ति काम: कुलद्वय अनुग्रहाय. देवता प्रीतये अहं उत्सृजामि । बोलकर कुश, यव, जल, छोड दें । देवताको नमस्कार करें । ब्राम्हाणभोजन । जय विधि सायंकाल में हो । सायंपूजा, बलिदान आदि पश्चात् आचार्य एवं यजमान रात्रि में जागरण करें । वेदपठन, पुराणपाठ आदि करते रहें । दूसरे दिन आचार्य मूर्तिस्थापन की विधि करें ।
प्रासादोत्सर्ग भावपूर्ण क्रिया है । जो मंदिर बनवाया है उसे यजमान सभी को - विश्व को सोंपता है और कहता है - यह मेरा नहीं है । सभी लोग यहां आये और शांति - प्रसन्नता पायें । कोई गलतई से भीन कहे कि यह अमुक व्यक्तिका मंदिर है । इसके साथ उसे संभालने की जिम्मेवारी भी सभी के लिए जिम्मेवार बनायें उनसे व्रत करायें कि हम प्रतिदिन आयेंगे । सभी मिलकर उत्सव करेंगे । हमारे गांव का मंदिर सभी के लिए उत्साहकेन्द्र, संस्कृतिरक्षा केन्द्र, तीर्थक्षेत्र बनेगा ।
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Last Updated : May 24, 2018
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