तुम बिन मेरी कौन खबर ले, गोबरधन गिरधारी ।
कीट मुकुट पीताम्बर सोहे, कुण्डलकी छबि न्यारी ॥१॥
तन- मन -धन सब तुम पै वारुँ, राखो लाज हमारी ।
इन नयननमें तुम्हीं बसे हो, चरण कमल बलिहारी ॥२॥
भिलनीजीके बेर बसे मन, स्वाद लिया था भारी ।
कर दीने धनवान सुदामा, तुमने गणिका तारी ॥३॥
गौतम ऋषिकी नारी अहिल्या, रजसे स्वर्ग सिधारी ।
मीराके प्रभु गिरधर- नागर, जनम-जनम दासी थारी ॥४॥