नातो नामको जी म्हाँसू तनक न तोड़यो जाय ॥टेर॥
पाँना ज्यूँ पीली पड़ी जी लोग कहे पिंड रोग ।
छाने लाँघण म्हे किया जी राम मिलन की जोग ॥१॥
बावल बैद बुलाइया जी पकड़ दिखाई म्हारी बाँह ।
मूरख बैद मरम नहिं जाणै, कसक कलेजे माहँ ॥२॥
जावो वैद घर आपणे जी म्हाँरो नाँव न लेय ।
मैं तो दासी विरह की जी तू काहे कूँ ओषद देय ॥३॥
माँस गल गल छीजिया जी करके रह् या गल आहि ।
आँगलियाँ री मुँदड़ी (म्हारे) आवन लागी बाँहि ॥४॥
रह रह पापी पपीहड़ा रे पीव को नाम न लेय ।
जे कोई बिरहण सम्हाले तो पीव कारण जिव देय ॥५॥
खिण मंदिर खण आँगणे रे खिण-खिण ठाडी होय ।
घायल ज्यूँ घूमू खड़ी, म्हारी विथा न बूझे कोय ॥६॥
काढ़ कलेजो मैं धरुँ रे, कागा तू ले जाय ।
ज्याँ दे साँ म्हारो पीव बसेरे, वो देखे तू खाय ॥७॥
म्हारे नातो नाँव को जी, और न नातो कोय ।
मीरा व्याकुल विरहणी जी हरि दरसण दीजो मोय ॥८॥