कबहूँ मिलोगे दीनानाथ ! हमारे, कबहूँ मिलोनगे राधेश्याम ! हमारे ।
कबहूँ मिलोगे, राम कबहूँ मिलोगे श्याम, कबहूँ मिलोगे चितचोर हमारे ॥१॥
जैसे मिले प्रह्लाद भगतको, खम्भ फाड़ हिरनाकुश मारे ।
जैसे मिले प्रभु भक्त-विभीषण, लंका जार निशाचर मारे ॥२॥
जैसे मिले प्रभु जनकसुताको, तोड़ा धनुष भूप सब हारे ।
जैसे मिले प्रभु द्रुपदसुताको, खैंचत चीर दुशासन हारे ॥३॥
जैसे मिले प्रभु मीराबाईको, जहरको प्यालो अमृत कर डारे ।
जैसे मिले प्रभु नरसीभगत को, भात भरन हरि आप पधारे ॥४॥
जैसे मिले प्रभु बली राजाको, चार मास द्वारे पर ठाड़े ।
सूरदासको कबहूँ मिलोगे, टप-टप टपकत नयन हमारे ॥५॥
कबहूँ मिलोगे माखन चोर हमारे, कबहूँ मिलोगे गोपीनाथ हमारे ? ॥