थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ
चरणाँ में दासी कब की खड़ी ॥ टेर॥
सज्जन दुश्मन हो गया प्रभु, लाजूँ खड़ी-खड़ी,
आप बिना मेरो कुण धणी, अध बीच नैया मेरी अटक पड़ी ॥
विरहका होल उठै घट भीतर, सूकूँ खड़ी-खड़ी,
पलक-पलक मेरे बरस बरोबर, मुश्किल होगी दाता एक घड़ी ॥
हार सिंगार सभी मैं त्यागा और मोतियनकी लड़ी-लड़ी,
ज्ञान ध्यान हृदयसै भाग्या प्रेम कटारी हृदय रलक पड़ी ॥
यो मन मस्त कयो नहीं माने, बदलै घड़ी-घड़ी
बार -बार गावे मीराँ बाई, प्रभु के चरणों में दासी लिपट पड़ी ॥