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थे तो पलक उघाड़ो दीनान...

वियोग - थे तो पलक उघाड़ो दीनान...

भगवद्वियोगकी पीडाका चित्रण ’वियोग’ शीर्षकके अंतर्गत पदोंमें है ।


थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ

चरणाँ में दासी कब की खड़ी ॥ टेर॥

सज्जन दुश्मन हो गया प्रभु, लाजूँ खड़ी-खड़ी,

आप बिना मेरो कुण धणी, अध बीच नैया मेरी अटक पड़ी ॥

विरहका होल उठै घट भीतर, सूकूँ खड़ी-खड़ी,

पलक-पलक मेरे बरस बरोबर, मुश्किल होगी दाता एक घड़ी ॥

हार सिंगार सभी मैं त्यागा और मोतियनकी लड़ी-लड़ी,

ज्ञान ध्यान हृदयसै भाग्या प्रेम कटारी हृदय रलक पड़ी ॥

यो मन मस्त कयो नहीं माने, बदलै घड़ी-घड़ी

बार -बार गावे मीराँ बाई, प्रभु के चरणों में दासी लिपट पड़ी ॥

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Last Updated : January 30, 2018

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