म्हारे जनम मरणरा साथी, थाँने नहिं बिसरुँ दिन-राती ॥
थाँ देख्याँ बिन कल न पड़त है, जारत मेरी छाती ।
ऊँचे चढ़-चढ़ पंथ निहारुँ, रोय-रोय अँखियाँ राती ॥१॥
यो संसार सकल जग झूठो, झूठो कुलर न्याती ।
दोउ कर जोड़याँ अरज करुँछूँ, सुण लीज्यो मेरी बाती ॥२॥
यो मन मेरो बड़ो हरामी ज्यूँ मदमातो हाथी ।
सतगुरु हाथ धर् यो सिर ऊपर आँकुस दै समझाती ॥३॥
पल-पल पिवको रुप निहारुँ, निरख-निरख सुख पाती ।
मीराके प्रभु गिरधर नागर, हरि-चरणाँ चित राती ॥४॥