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थे तो पलक उघाड़ो दीनान...

वियोग - थे तो पलक उघाड़ो दीनान...

भगवद्वियोगकी पीडाका चित्रण ’वियोग’ शीर्षकके अंतर्गत पदोंमें है ।


थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ-

मैं हाजिर-नाजिर कदकी खड़ी ॥ टेर॥

साजनियाँ दुसमण होय बैठ्या,

सबने लगूँ कड़ी ।

तुम बिन साजन कोई नहीं है,

डिगी नाव मेरी समँद अड़ी ॥१॥

दिन नहीं चैन रैण नहिं निंदरा,

सूखूँ खड़ी खड़ी ।

बाण बिरहका लग्या हियेमें,

भूलूँ न एक घड़ी ॥२॥

पत्थरकी तो अहिल्या तारी,

बनके बीच पड़ी ।

कहा बोझ मीरामें कहिये,

सौ पर एक धड़ी ॥३॥

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Last Updated : January 30, 2018

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